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<-Supplication in Seeking Refuge

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His Supplication in Seeking Refuge from Hateful Things, Bad Moral Qualities, and Blameworthy Acts

دُعَاؤُهُ فِي الِاسْتِعَاذَةِ مِنَ المَكارِهِ

أَللَّهُمَّ إنِّي أعُوذُ بِكَ مِنْ هَيَجَـانِ الْحِرْصِ ،
ऐ अल्लाह! मैं तुझसे पनाह मांगता हुं हिर्स की तुग़यानी,
وَسَوْرَةِ الغَضَبِ وَغَلَبَةِ الْحَسَدِ وضَعْفِ الصَّبْرِ
ग़ज़ब की शिद्दत, हसद की चीरादस्ती, बेसब्री,
وَقِلَّةِ الْقَنَاعَةِ وَشَكَاسَةِ الْخُلُقِ ،
क़नाअत की कमी, कज एख़लाक़ी,
وَإلْحَاحِ الشَّهْوَةِ ، وَمَلَكَةِ الْحَمِيَّةِ ،
ख़्वाहिशे नफ़्स की फ़रावानी,असबीयत के ग़लबे,
وَمُتَابَعَةِ الْهَوَى ، وَمُخَالَفَةِ الْهُدَى ،
हवा व हवस की पैरवी, हिदायत की खिलाफ़वर्ज़ी,
وَسِنَةِ الْغَفْلَةِ ، وَتَعَاطِي الْكُلْفَةِ ،
ख़्वाबे ग़फ़लत (की मदहोशी) और तकल्लुफ़ पसन्दी से नीज़
وَإيْثَارِ الْبَاطِلِ عَلَى الْحَقِّ وَالإصْرَارِ عَلَى الْمَأثَمِ ،
बातिल को हक़ पर तरजीह देने, गुनाहों पर इसरार करने,
وَاسْتِصْغَـارِ الْمَعْصِيَـةِ ، وَاسْتِكْثَارِ الطَّاعَةِ ،
मासियत को हक़ीर और इताअत को अज़ीम समझने,
وَمُبَاهَاةِ الْمُكْثِرِينَ ، وَالإزْرآءِ بِالْمُقِلِّينَ ،
दौलतमन्दों के से तफ़ाख़ुर, मोहताजों की तहक़ीर
وَسُوءِ الْوِلاَيَةِ لِمَنْ تَحْتَ أَيْدِينَا
और अपने ज़ेर दस्तों की बुरी निगेहदाश्त
وَتَرْكِ الشُّكْرِ لِمَنِ اصْطَنَعَ الْعَارِفَةَ عِنْدَنَا ،
और जो हमसे भलाई करे उसकी नाशुक्री से
أَوْ أَنْ نَعْضُدَ ظَالِماً ، أَوْ نَخْذُلَ مَلْهُوفاً ،
और इससे के हम किसी ज़ालिम की मदद करें और मुसीबतज़दा को नज़रअन्दाज़ करें
أَوْ نَرُومَ مَا لَيْسَ لَنَا بِحَقّ،
या उस चीज़ का क़स्द करें जिसका हमें हक़ नहीं
أَوْ نَقُولَ فِي الْعِلْمِْ بِغَيْرِ عِلْم
या दीन में बे जाने बूझे दख़ल दें
وَنَعُـوذُ بِـكَ أَنْ نَنْطَوِيَ عَلَى غِشِّ أَحَد ،
और हम तुझसे पनाह मांगते हैं इस बात से के किसी को फ़रेब देने का क़स्द करें
وَأَنْ نُعْجَبَ بِأَعْمَالِنَا ، وَنَمُدَّ فِي آمَالِنَا ،
या अपने आमाल पर नाज़ाँ हों और अपनी उम्मीदों का दामन फैलाएं
وَنَعُوذُ بِكَ مِنْ سُوءِ السَّرِيرَةِ ، وَاحْتِقَارِ الصَّغِيرَةِ ،
और हम तुझसे पनाह मांगते हैं, बदबातनी और छोटे गुनाहों को हक़ीर तसव्वुर करने
وَأَنْ يَسْتَحْوِذَ عَلَيْنَا الشَّيْطَانُ ،
और इस बात से के शैतान हम पर ग़लबा हासिल कर ले जाए
أَوْ يَنْكُبَنَـا الزَّمَانُ ، أَوْ يَتَهَضَّمَنَا السُّلْطَانُ.
या ज़माना हमको मुसीबत में डाले या फ़रमानरवा अपने मज़ालिम का निशाना बनाए
وَنَعُوذُ بِكَ مِنْ تَنَاوُلِ الإسْرَافِ ، وَمِنْ فِقْدَانِ الْكَفَـافِ
और हम तुझसे पनाह मांगते हैं फ़िज़ूलख़र्ची में पड़ने और हस्बे ज़रूरत रिज़्क़ के न मिलने से
وَنَعُوذُ بِـكَ مِنْ شَمَاتَةِ الأَعْدَاءِ وَمِنَ الْفَقْرِ إلَى الاَكْفَاءِ
और हम तुझसे पनाह मांगते हैं दुश्मनों की सेमातत, हमचश्मों की एहतियाज,
وَمِنْ مَعِيشَة فِي شِدَّة وَمَيْتَة عَلَى غَيْـرِ عُدَّة.
सख़्ती में ज़िन्दगी बसर करने और तोशए आख़ेरत के बग़ैर मर जाने से
وَنَعُـوذُ بِكَ مِنَ الْحَسْرَةِ الْعُظْمى ،
और तुझसे पनाह मांगते हैं बड़े तास्सुफ़,
وَالْمُصِيبَةِ الْكُبْرَى ، وَأَشْقَى الشَّقَآءِ وَسُوءِ المآبِ ،
बड़ी मुसीबत, बदतरीन बदबख़्ती, बुरे अन्जाम,
وَحِرْمَانِ الثَّوَابِ ، وَحُلُولِ الْعِقَابِ.
सवाब से महरूमी और अज़ाब के वारिद होने से।
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ ،
ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा,
وَأَعِذْنِي مِنْ كُلِّ ذَلِكَ بِرَحْمَتِكَ
और अपनी हरमत के सदक़े में मुझे
وَجَمِيـعَ الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ
और तमाम मोमेनीन व मोमेनात को उन सब बुराइयों से पनाह दे।
يَا أَرْحَمَ الرَّاحِمِينَ.
ऐ तमाम रहम करने वालों में सबसे ज़्यादा रहम करने वाले।

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