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سورة يونس
लोगों तुम्हारे पास तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से नसीहत (किताबे ख़ुदा आ चुकी और जो (मरज़ शिर्क वगैरह) दिल में हैं उनकी दवा और ईमान वालों के लिए हिदायत और रहमत
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि (ये क़ुरान) ख़ुदा के फज़ल व करम और उसकी रहमत से तुमको मिला है (ही) तो उन लोगों को इस पर खुश होना चाहिए
और जो कुछ वह जमा कर रहे हैं उससे कहीं बेहतर है (ऐ रसूल) तुम कह दो कि तुम्हारा क्या ख्याल है कि ख़ुदा ने तुम पर रोज़ी नाज़िल की तो अब उसमें से बाज़ को हराम बाज़ को हलाल बनाने लगे (ऐ रसूल) तुम कह दो कि क्या ख़ुदा ने तुम्हें इजाज़त दी है या तुम ख़ुदा पर बोहतान बाँधते हो
और जो लोग ख़ुदा पर झूठ मूठ बोहतान बॉधा करते हैं रोजे क़यामत का क्या ख्याल करते हैं उसमें शक़ नहीं कि ख़ुदा तो लोगों पर बड़ा फज़ल व (करम) है मगर उनमें से बहुतेरे शुक्र गुज़ार नहीं हैं
(और ऐ रसूल) तुम (चाहे) किसी हाल में हो और क़ुरान की कोई सी भी आयत तिलावत करते हो और (लोगों) तुम कोई सा भी अमल कर रहे हो हम (हम सर वक़त) जब तुम उस काम में मशग़ूल होते हो तुम को देखते रहते हैं और तुम्हारे परवरदिगार से ज़र्रा भी कोई चीज़ ग़ायब नहीं रह सकती न ज़मीन में और न आसमान में और न कोई चीज़ ज़र्रे से छोटी है और न उससे बढ़ी चीज़ मगर वह रौशन किताब लौहे महफूज़ में ज़रुर है
आगाह रहो इसमें शक़ नहीं कि दोस्ताने ख़ुदा पर (क़यामत में) न तो कोई ख़ौफ होगा और न वह आजुर्दा (ग़मग़ीन) ख़ातिर होगे
ये वह लोग हैं जो ईमान लाए और (ख़ुदा से) डरते थे
उन्हीं लोगों के वास्ते दीन की ज़िन्दगी में भी और आख़िरत में (भी) ख़ुशख़बरी है ख़ुदा की बातों में अदल बदल नहीं हुआ करता यही तो बड़ी कामयाबी है