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سورة يونس
तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते तो जो शख़्स ख़ुदा पर झूठ बोहतान बॉधे या उसकी आयतो को झुठलाए उससे बढ़ कर और ज़ालिम कौन होगा इसमें शक़ नहीं कि (ऐसे) गुनाहगार कामयाब नहीं हुआ करते
या लोग ख़ुदा को छोड़ कर ऐसी चीज़ की परसतिश करते है जो न उनको नुकसान ही पहुँचा सकती है न नफा और कहते हैं कि ख़ुदा के यहाँ यही लोग हमारे सिफारिशी होगे (ऐ रसूल) तुम (इनसे) कहो तो क्या तुम ख़ुदा को ऐसी चीज़ की ख़बर देते हो जिसको वह न तो आसमानों में (कहीं) पाता है और न ज़मीन में ये लोग जिस चीज़ को उसका शरीक बनाते है
उससे वह पाक साफ और बरतर है और सब लोग तो (पहले) एक ही उम्मत थे और (ऐ रसूल) अगर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से एक बात (क़यामत का वायदा) पहले न हो चुकी होती जिसमें ये लोग एख्तिलाफ कर रहे हैं उसका फैसला उनके दरमियान (कब न कब) कर दिया गया होता
और कहते हैं कि उस पैग़म्बर पर कोई मोजिज़ा (हमारी ख्वाहिश के मुवाफिक़) क्यों नहीं नाज़िल किया गया तो (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ग़ैब (दानी) तो सिर्फ ख़ुदा के वास्ते ख़ास है तो तुम भी इन्तज़ार करो और तुम्हारे साथ मै (भी) यक़ीनन इन्तज़ार करने वालों में हूँ
और लोगों को जो तकलीफ पहुँची उसके बाद जब हमने अपनी रहमत का जाएक़ा चखा दिया तो यकायक उन लोगों से हमारी आयतों में हीले बाज़ी शुरू कर दी (ऐ रसूल) तुम कह दो कि तद्बीर में ख़ुदा सब से ज्यादा तेज़ है तुम जो कुछ मक्कारी करते हो वह हमारे भेजे हुए (फरिश्ते) लिखते जाते हैं
वह वही ख़ुदा है जो तुम्हें ख़ुश्की और दरिया में सैर कराता फिरता है यहाँ तक कि जब (कभी) तुम कश्तियों पर सवार होते हो और वह उन लोगों को बाद मुवाफिक़ (हवा के धारे) की मदद से लेकर चली और लोग उस (की रफ्तार) से ख़ुश हुए (यकायक) कश्ती पर हवा का एक झोंका आ पड़ा और (आना था कि) हर तरफ से उस पर लहरें (बढ़ी चली) आ रही हैं और उन लोगों ने समझ लिया कि अब घिर गए (और जान न बचेगी) तब अपने अक़ीदे को उसके वास्ते निरा खरा करके खुदा से दुआएँ मागँने लगते हैं कि (ख़ुदाया) अगर तूने इस (मुसीबत) से हमें नजात दी तो हम ज़रुर बड़े शुक्र गुज़ार होंगे
फिर जब ख़ुदा ने उन्हें नजात दी तो वह लोग ज़मीन पर (कदम रखते ही) फौरन नाहक़ सरकशी करने लगते हैं (ऐ लोगों तुम्हारी सरकशी का वबाल) तो तुम्हारी ही जान पर है - (ये भी) दुनिया की (चन्द रोज़ा) ज़िन्दगी का फायदा है फिर आख़िर हमारी (ही) तरफ तुमको लौटकर आना है तो (उस वक्त) हम तुमको जो कुछ (दुनिया में) करते थे बता देगे
दुनियावी ज़िदगी की मसल तो बस पानी की सी है कि हमने उसको आसमान से बरसाया फिर ज़मीन के साग पात जिसको लोग और चौपाए खा जाते हैं (उसके साथ मिल जुलकर निकले यहाँ तक कि जब ज़मीन ने (फसल की चीज़ों से) अपना बनाओ सिंगार कर लिया और (हर तरह) आरास्ता हो गई और खेत वालों ने समझ लिया कि अब वह उस पर यक़ीनन क़ाबू पा गए (जब चाहेंगे काट लेगे) यकायक हमारा हुक्म व अज़ाब रात या दिन को आ पहुँचा तो हमने उस खेत को ऐसा साफ कटा हुआ बना दिया कि गोया कुल उसमें कुछ था ही नहीं जो लोग ग़ौर व फिक्र करते हैं उनके वास्ते हम आयतों को यूँ तफसीलदार बयान करते है