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سورة هود
(वरना) फिर तुम्हें फौरन ही (ख़ुदा का) अज़ाब ले डालेगा इस पर भी उन लोगों ने उसकी कूँचे काटकर (मार) डाला तब सालेह ने कहा अच्छा तीन दिन तक (और) अपने अपने घर में चैन (उड़ा लो)
यही ख़ुदा का वायदा है जो कभी झूठा नहीं होता फिर जब हमारा (अज़ाब का) हुक्म आ पहुँचा तो हमने सालेह और उन लोगों को जो उसके साथ ईमान लाए थे अपनी मेहरबानी से नजात दी और उस दिन की रुसवाई से बचा लिया इसमें शक़ नहीं कि तेरा परवरदिगार ज़बरदस्त ग़ालिब है
और जिन लोगों ने ज़ुल्म किया था उनको एक सख्त चिघाड़ ने ले डाला तो वह लोग अपने अपने घरों में औंधें पड़े रह गये
और ऐसे मर मिटे कि गोया उनमें कभी बसे ही न थे तो देखो क़ौमे समूद ने अपने परवरदिगार की नाफरमानी की और (सज़ा दी गई) सुन रखो कि क़ौमे समूद (उसकी बारगाह से) धुत्कारी हुईहै
और हमारे भेजे हुए (फरिश्ते) इबराहीम के पास खुशख़बरी लेकर आए और उन्होंने (इबराहीम को) सलाम किया (इबराहीम ने) सलाम का जवाब दिया फिर इबराहीम एक बछड़े का भुना हुआ (गोश्त) ले आए
(और साथ खाने बैठें) फिर जब देखा कि उनके हाथ उसकी तरफ नहीं बढ़ते तो उनकी तरफ से बदगुमान हुए और जी ही जी में डर गए (उसको वह फरिश्ते समझे) और कहने लगे आप डरे नहीं हम तो क़ौम लूत की तरफ (उनकी सज़ा के लिए) भेजे गए हैं
और इबराहीम की बीबी (सायरा) खड़ी हुई थी वह (ये ख़बर सुनकर) हॅस पड़ी तो हमने (उन्हेंफ़रिश्तों के ज़रिए से) इसहाक़ के पैदा होने की खुशख़बरी दी और इसहाक़ के बाद याक़ूब की
वह कहने लगी ऐ है क्या अब मै बच्चा जनने बैठॅूगी मैं तो बुढ़िया हूँ और ये मेरे मियॉ भी बूढे है ये तो एक बड़ी ताज्जुब खेज़ बात है