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سورة الحجر
बेशक हम ही ने क़ुरान नाज़िल किया और हम ही तो उसके निगेहबान भी हैं
(ऐ रसूल) हमने तो तुमसे पहले भी अगली उम्मतों में (और भी बहुत से) रसूल भेजे
और (उनकी भी यही हालत थी कि) उनके पास कोई रसूल न आया मगर उन लोगों ने उसकी हँसी ज़रुर उड़ाई
हम (गोया खुद) इसी तरह इस (गुमराही) को (उन) गुनाहगारों के दिल में डाल देते हैं
ये कुफ्फ़ार इस (क़ुरान) पर ईमान न लाएँगें और (ये कुछ अनोखी बात नहीं) अगलों के तरीक़े भी (ऐसे ही) रहें है
और अगर हम अपनी कुदरत से आसमान का एक दरवाज़ा भी खोल दें और ये लोग दिन दहाड़े उस दरवाज़े से (आसमान पर) चढ़ भी जाएँ
तब भी यहीं कहेगें कि हो न हो हमारी ऑंखें (नज़र बन्दी से) मतवाली कर दी गई हैं या नहीं तो हम लोगों पर जादू किया गया है
और हम ही ने आसमान में बुर्ज बनाए और देखने वालों के वास्ते उनके (सितारों से) आरास्ता (सजाया) किया