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BackThe Night Journey - Al-Israa

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سورة الإسراء
और (ऐ रसूल) कह दो कि (दीन) हक़ आ गया और बातिल नेस्तनाबूद हुआ इसमें शक़ नहीं कि बातिल मिटने वाला ही था
और हम तो क़ुरान में वही चीज़ नाज़िल करते हैं जो मोमिनों के लिए (सरासर) शिफा और रहमत है (मगर) नाफरमानों को तो घाटे के सिवा कुछ बढ़ाता ही नहीं
और जब हमने आदमी को नेअमत अता फरमाई तो (उल्टे) उसने (हमसे) मुँह फेरा और पहलू बचाने लगा और जब उसे कोई तकलीफ छू भी गई तो मायूस हो बैठा
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि हर (एक अपने तरीक़े पर कारगुज़ारी करता है फिर तुम में से जो शख़्श बिल्कुल ठीक सीधी राह पर है तुम्हारा परवरदिगार (उससे) खूब वाक़िफ है
और (ऐ रसूल) तुमसे लोग रुह के बारे में सवाल करते हैं तुम (उनके जवाब में) कह दो कि रूह (भी) मेरे परदिगार के हुक्म से (पैदा हुईहै) और तुमको बहुत थोड़ा सा इल्म दिया गया है
(इसकी हक़ीकत नहीं समझ सकते) और (ऐ रसूल) अगर हम चाहे तो जो (क़ुरान) हमने तुम्हारे पास 'वही' के ज़रिए भेजा है (दुनिया से) उठा ले जाएँ फिर तुम अपने वास्ते हमारे मुक़ाबले में कोई मददगार न पाओगे
मगर ये सिर्फ तुम्हारे परवरदिगार की रहमत है (कि उसने ऐसा किया) इसमें शक़ नहीं कि उसका तुम पर बड़ा फज़ल व करम है
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि (अगर सारे दुनिया जहाँन के) आदमी और जिन इस बात पर इकट्ठे हो कि उस क़ुरान का मिसल ले आएँ तो (ना मुमकिन) उसके बराबर नहीं ला सकते अगरचे (उसको कोशिश में) एक का एक मददगार भी बने