The Night Journey - Al-Israa
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سورة الإسراء
और (ऐ रसूल) हमने तो (क़ुरान) तुम्हारे पास 'वही' के ज़रिए भेजा अगर चे लोग तो तुम्हें इससे बहकाने ही लगे थे ताकि तुम क़ुरान के अलावा फिर (दूसरी बातों का) इफ़तेरा बाँधों और (जब तुम ये कर गुज़रते उस वक्त ये लोग तुम को अपना सच्चा दोस्त बना लेते और अगर हम तुमको साबित क़दम न रखते तो ज़रुर तुम भी ज़रा (ज़हूर) झुकने ही लगते إِذًا لَّأَذَقْنَٰكَ ضِعْفَ ٱلْحَيَوٰةِ وَضِعْفَ ٱلْمَمَاتِ ثُمَّ لَا تَجِدُ لَكَ عَلَيْنَا نَصِيرًا ﴿٧٥﴾ और (अगर तुम ऐसा करते तो) उस वक्त हम तुमको ज़िन्दगी में भी और मरने पर भी दोहरे (अज़ाब) का मज़ा चखा देते और फिर तुम को हमारे मुक़ाबले में कोई मददगार भी न मिलता और ये लोग तो तुम्हें (सर ज़मीन मक्के) से दिल बर्दाश्त करने ही लगे थे ताकि तुम को वहाँ से (शाम की तरफ) निकाल बाहर करें और ऐसा होता तो तुम्हारे पीछे में ये लोग चन्द रोज़ के सिवा ठहरने भी न पाते तुमसे पहले जितने रसूल हमने भेजे हैं उनका बराबर यही दस्तूर रहा है और जो दस्तूर हमारे (ठहराए हुए) हैं उनमें तुम तग्य्युर तबद्दुल (रद्दो बदल) न पाओगे (ऐ रसूल) सूरज के ढलने से रात के अंधेरे तक नमाज़े ज़ोहर, अस्र, मग़रिब, इशा पढ़ा करो और नमाज़ सुबह (भी) क्योंकि सुबह की नमाज़ पर (दिन और रात दोनों के फरिश्तों की) गवाही होती है और रात के ख़ास हिस्से में नमाजे तहज्जुद पढ़ा करो ये सुन्नत तुम्हारी खास फज़ीलत हैं क़रीब है कि क़यामत के दिन ख़ुदा तुमको मक़ामे महमूद तक पहुँचा दे और ये दुआ माँगा करो कि ऐ मेरे परवरदिगार मुझे (जहाँ) पहुँचा अच्छी तरह पहुँचा और मुझे (जहाँ से निकाल) तो अच्छी तरह निकाल और मुझे ख़ास अपनी बारगाह से एक हुकूमत अता फरमा जिस से (हर क़िस्म की) मदद पहुँचे | ||