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سورة الأنبياء
अगर हम कोई खेल बनाना चाहते तो बेशक हम उसे अपनी तजवीज़ से बना लेते अगर हमको करना होता (मगर हमें शायान ही न था)
बल्कि हम तो हक़ को नाहक़ (के सर) पर खींच मारते हैं तो वह बिल्कुल के सर को कुचल देता है फिर वह उसी वक्त नेस्तवेनाबूद हो जाता है और तुम पर अफ़सोस है कि ऐसी-ऐसी नाहक़ बातें बनाये करते हो
हालाँकि जो लोग (फरिश्ते) आसमान और ज़मीन में हैं (सब) उसी के (बन्दे) हैं और जो (फरिश्ते) उस सरकार में हैं न तो वह उसकी इबादत की शेख़ी करते हैं और न थकते हैं
रात और दिन उसकी तस्बीह किया करते हैं (और) कभी काहिली नहीं करते
उन लोगों जो माबूद ज़मीन में बना रखे हैं क्या वही (लोगों को) ज़िन्दा करेंगे
अगर बफ़रने मुहाल) ज़मीन व आसमान में खुदा कि सिवा चन्द माबूद होते तो दोनों कब के बरबाद हो गए होते तो जो बातें ये लोग अपने जी से (उसके बारे में) बनाया करते हैं खुदा जो अर्श का मालिक है उन तमाम ऐबों से पाक व पाकीज़ा है
जो कुछ वह करता है उसकी पूछगछ नहीं हो सकती
(हाँ) और उन लोगों से बाज़पुर्स होगी क्या उन लोगों ने खुदा को छोड़कर कुछ और माबूद बना रखे हैं (ऐ रसूल) तुम कहो कि भला अपनी दलील तो पेश करो जो मेरे (ज़माने में) साथ है उनकी किताब (कुरान) और जो लोग मुझ से पहले थे उनकी किताबें (तौरेत वग़ैरह) ये (मौजूद) हैं (उनमें खुदा का शरीक बता दो) बल्कि उनमें से अक्सर तो हक़ (बात) को तो जानते ही नहीं