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سورة المؤمنون
अलबत्ता वह ईमान लाने वाले रस्तगार हुए
जो अपनी नमाज़ों में (खुदा के सामने) गिड़गिड़ाते हैं
और जो बेहूदा बातों से मुँह फेरे रहते हैं
और जो ज़कात (अदा) किया करते हैं
और जो (अपनी) शर्मगाहों को (हराम से) बचाते हैं
मगर अपनी बीबियों से या अपनी ज़र ख़रीद लौनडियों से कि उन पर हरगिज़ इल्ज़ाम नहीं हो सकता
पस जो शख्स उसके सिवा किसी और तरीके से शहवत परस्ती की तमन्ना करे तो ऐसे ही लोग हद से बढ़ जाने वाले हैं
और जो अपनी अमानतों और अपने एहद का लिहाज़ रखते हैं