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سورة الأحزاب
और (साफ-साफ) उनवाने शाइस्ता से बात किया करो और अपने घरों में निचली बैठी रहो और अगले ज़माने जाहिलियत की तरह अपना बनाव सिंगार न दिखाती फिरो और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ा करो और (बराबर) ज़कात दिया करो और खुदा और उसके रसूल की इताअत करो ऐ (पैग़म्बर के) अहले बैत खुदा तो बस ये चाहता है कि तुमको (हर तरह की) बुराई से दूर रखे और जो पाक व पाकीज़ा दिखने का हक़ है वैसा पाक व पाकीज़ा रखे
और (ऐ नबी की बीबियों) तुम्हारे घरों में जो खुदा की आयतें और (अक़ल व हिकमत की बातें) पढ़ी जाती हैं उनको याद रखो कि बेशक ख़ुदा बड़ा बारीक है वाक़िफकार है
(दिल लगा के सुनो) मुसलमान मर्द और मुसलमान औरतें और ईमानदार मर्द और ईमानदार औरतें और फरमाबरदार मर्द और फरमाबरदार औरतें और रास्तबाज़ मर्द और रास्तबाज़ औरतें और सब्र करने वाले मर्द और सब्र करने वाली औरतें और फिरौतनी करने वाले मर्द और फिरौतनी करने वाली औरतें और Âैरात करने वाले मर्द और Âैरात करने वाली औरतें और रोज़ादार मर्द और रोज़ादार औरतें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करने वाले मर्द और हिफाज़त करने वाली औरतें और खुदा की बकसरत याद करने वाले मर्द और याद करने वाली औरतें बेशक इन सब लोगों के वास्ते खुदा ने मग़फिरत और (बड़ा) सवाब मुहैय्या कर रखा है
और न किसी ईमानदार मर्द को ये मुनासिब है और न किसी ईमानदार औरत को जब खुदा और उसके रसूल किसी काम का हुक्म दें तो उनको अपने उस काम (के करने न करने) अख़तेयार हो और (याद रहे कि) जिस शख्स ने खुदा और उसके रसूल की नाफरमानी की वह यक़ीनन खुल्लम खुल्ला गुमराही में मुब्तिला हो चुका
और (ऐ रसूल वह वक्त याद करो) जब तुम उस शख्स (ज़ैद) से कह रहे थे जिस पर खुदा ने एहसान (अलग) किया था और तुमने उस पर (अलग) एहसान किया था कि अपनी बीबी (ज़ैनब) को अपनी ज़ौज़ियत में रहने दे और खुदा से डेर खुद तुम इस बात को अपने दिल में छिपाते थे जिसको (आख़िरकार) खुदा ज़ाहिर करने वाला था और तुम लोगों से डरते थे हालॉकि खुदा इसका ज्यादा हक़दार है कि तुम उस से डरो ग़रज़ जब ज़ैद अपनी हाजत पूरी कर चुका (तलाक़ दे दी) तो हमने (हुक्म देकर) उस औरत (ज़ैनब) का निकाह तुमसे कर दिया ताकि आम मोमिनीन को अपने ले पालक लड़कों की बीवियों (से निकाह करने) में जब वह अपना मतलब उन औरतों से पूरा कर चुकें (तलाक़ दे दें) किसी तरह की तंगी न रहे और खुदा का हुक्म तो किया कराया हुआ (क़तई) होता है
जो हुक्म खुदा ने पैग़म्बर पर फर्ज क़र दिया (उसके करने) में उस पर कोई मुज़ाएका नहीं जो लोग (उनसे) पहले गुज़र चुके हैं उनके बारे में भी खुदा का (यही) दस्तूर (जारी) रहा है (कि निकाह में तंगी न की) और खुदा का हुक्म तो (ठीक अन्दाज़े से) मुक़र्रर हुआ होता है
वह लोग जो खुदा के पैग़ामों को (लोगों तक जूँ का तूँ) पहुँचाते थे और उससे डरते थे और खुदा के सिवा किसी से नहीं डरते थे (फिर तुम क्यों डरते हो) और हिसाब लेने के वास्ते तो खुद काफ़ी है
(लोगों) मोहम्मद तुम्हारे मर्दों में से (हक़ीक़तन) किसी के बाप नहीं हैं (फिर जैद की बीवी क्यों हराम होने लगी) बल्कि अल्लाह के रसूल और नबियों की मोहर (यानी ख़त्म करने वाले) हैं और खुदा तो हर चीज़ से खूब वाक़िफ है