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سورة الرحمن
तो (ऐ जिन व इन्स) तुम अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत को झुठलाओगे
जो (मख़लूक) ज़मीन पर है सब फ़ना होने वाली है
और सिर्फ तुम्हारे परवरदिगार की ज़ात जो अज़मत और करामत वाली है बाक़ी रहेगी
तो तुम दोनों अपने मालिक की किस किस नेअमत से इन्कार करोगे
और जितने लोग सारे आसमान व ज़मीन में हैं (सब) उसी से माँगते हैं वह हर रोज़ (हर वक्त) मख़लूक के एक न एक काम में है
तो तुम दोनों अपने सरपरस्त की कौन कौन सी नेअमत से मुकरोगे
(ऐ दोनों गिरोहों) हम अनक़रीब ही तुम्हारी तरफ मुतावज्जे होंगे
तो तुम दोनों अपने पालने वाले की किस किस नेअमत को न मानोगे