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سورة الرحمن
ऐ गिरोह जिन व इन्स अगर तुममें क़ुदरत है कि आसमानों और ज़मीन के किनारों से (होकर कहीं) निकल (कर मौत या अज़ाब से भाग) सको तो निकल जाओ (मगर) तुम तो बग़ैर क़ूवत और ग़लबे के निकल ही नहीं सकते (हालॉ कि तुममें न क़ूवत है और न ही ग़लबा)
तो तुम अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत को झुठलाओगे
(गुनाहगार जिनों और आदमियों जहन्नुम में) तुम दोनो पर आग का सब्ज़ शोला और सियाह धुऑं छोड़ दिया जाएगा तो तुम दोनों (किस तरह) रोक नहीं सकोगे
फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत से इन्कार करोगे
फिर जब आसमान फट कर (क़यामत में) तेल की तरह लाल हो जाऐगा
तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत से मुकरोगे
तो उस दिन न तो किसी इन्सान से उसके गुनाह के बारे में पूछा जाएगा न किसी जिन से
तो तुम दोनों अपने मालिक की किस किस नेअमत को न मानोगे