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سورة الإنشقاق
और रात की और उन चीज़ों की जिन्हें ये ढाँक लेती है
और चाँद की जब पूरा हो जाए
कि तुम लोग ज़रूर एक सख्ती के बाद दूसरी सख्ती में फँसोगे
तो उन लोगों को क्या हो गया है कि ईमान नहीं ईमान नहीं लाते
और जब उनके सामने क़ुरान पढ़ा जाता है तो (ख़ुदा का) सजदा नहीं करते (21) (सजदा)
बल्कि काफ़िर लोग तो (और उसे) झुठलाते हैं
और जो बातें ये लोग अपने दिलों में छिपाते हैं ख़ुदा उसे ख़ूब जानता है
तो (ऐ रसूल) उन्हें दर्दनाक अज़ाब की ख़ुशख़बरी दे दो