Surat Hud (Hud) - هود
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11:25 وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا نُوحًا إِلَىٰ قَوْمِهِۦٓ إِنِّى لَكُمْ نَذِيرٌ مُّبِينٌ ﴿٢٥﴾ أَن لَّا تَعْبُدُوٓا۟ إِلَّا ٱللَّهَ إِنِّىٓ أَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍ أَلِيمٍ﴿٢٦﴾ فَقَالَ ٱلْمَلَأُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ مِن قَوْمِهِۦ مَا نَرَىٰكَ إِلَّا بَشَرًا مِّثْلَنَا وَمَا نَرَىٰكَ ٱتَّبَعَكَ إِلَّا ٱلَّذِينَ هُمْ أَرَاذِلُنَا بَادِىَ ٱلرَّأْىِ وَمَا نَرَىٰ لَكُمْ عَلَيْنَا مِن فَضْلٍۭ بَلْ نَظُنُّكُمْ كَٰذِبِينَ﴿٢٧﴾ قَالَ يَٰقَوْمِ أَرَءَيْتُمْ إِن كُنتُ عَلَىٰ بَيِّنَةٍ مِّن رَّبِّى وَءَاتَىٰنِى رَحْمَةً مِّنْ عِندِهِۦ فَعُمِّيَتْ عَلَيْكُمْ أَنُلْزِمُكُمُوهَا وَأَنتُمْ لَهَا كَٰرِهُونَ﴿٢٨﴾ وَيَٰقَوْمِ لَآ أَسْـَٔلُكُمْ عَلَيْهِ مَالًا إِنْ أَجْرِىَ إِلَّا عَلَى ٱللَّهِ وَمَآ أَنَا۠ بِطَارِدِ ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓا۟ إِنَّهُم مُّلَٰقُوا۟ رَبِّهِمْ وَلَٰكِنِّىٓ أَرَىٰكُمْ قَوْمًا تَجْهَلُونَ﴿٢٩﴾ وَيَٰقَوْمِ مَن يَنصُرُنِى مِنَ ٱللَّهِ إِن طَرَدتُّهُمْ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ﴿٣٠﴾ وَلَآ أَقُولُ لَكُمْ عِندِى خَزَآئِنُ ٱللَّهِ وَلَآ أَعْلَمُ ٱلْغَيْبَ وَلَآ أَقُولُ إِنِّى مَلَكٌ وَلَآ أَقُولُ لِلَّذِينَ تَزْدَرِىٓ أَعْيُنُكُمْ لَن يُؤْتِيَهُمُ ٱللَّهُ خَيْرًا ٱللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا فِىٓ أَنفُسِهِمْ إِنِّىٓ إِذًا لَّمِنَ ٱلظَّٰلِمِينَ﴿٣١﴾ قَالُوا۟ يَٰنُوحُ قَدْ جَٰدَلْتَنَا فَأَكْثَرْتَ جِدَٰلَنَا فَأْتِنَا بِمَا تَعِدُنَآ إِن كُنتَ مِنَ ٱلصَّٰدِقِينَ﴿٣٢﴾ قَالَ إِنَّمَا يَأْتِيكُم بِهِ ٱللَّهُ إِن شَآءَ وَمَآ أَنتُم بِمُعْجِزِينَ﴿٣٣﴾ (और उन्होने अपनी क़ौम से कहा कि) मैं तो तुम्हारा (अज़ाबे ख़ुदा से) सरीही धमकाने वाला हूँ (और) ये (समझता हूँ) कि तुम ख़ुदा के सिवा किसी की परसतिश न करो मैं तुम पर एक दर्दनाक दिन (क़यामत) के अज़ाब से डराता हूँ तो उनके सरदार जो काफ़िर थे कहने लगे कि हम तो तुम्हें अपना ही सा एक आदमी समझते हैं और हम तो देखते हैं कि तुम्हारे पैरोकार हुए भी हैं तो बस सिर्फ हमारे चन्द रज़ील (नीच) लोग (और वह भी बे सोचे समझे सरसरी नज़र में) और हम तो अपने ऊपर तुम लोगों की कोई फज़ीलत नहीं देखते बल्कि तुम को झूठा समझते हैं (नूह ने) कहा ऐ मेरी क़ौम क्या तुमने ये समझा है कि अगर मैं अपने परवरदिगार की तरफ से एक रौशन दलील पर हूँ और उसने अपनी सरकार से रहमत (नुबूवत) अता फरमाई और वह तुम्हें सुझाई नहीं देती तो क्या मैं उसको (ज़बरदस्ती) तुम्हारे गले मंढ़ सकता हूँ और तुम हो कि उसको नापसन्द किए जाते हो और ऐ मेरी क़ौम मैं तो तुमसे इसके सिले में कुछ माल का तालिब नहीं मेरी मज़दूरी तो सिर्फ ख़ुदा के ज़िम्मे है और मै तो तुम्हारे कहने से उन लोगों को जो ईमान ला चुके हैं निकाल नहीं सकता (क्योंकि) ये लोग भी ज़रुर अपने परवरदिगार के हुज़ूर में हाज़िर होगें मगर मै तो देखता हूँ कि कुछ तुम ही लोग (नाहक़) जिहालत करते हो और मेरी क़ौम अगर मै इन (बेचारे ग़रीब) (ईमानदारों) को निकाल दूँ तो ख़ुदा (के अज़ाब) से (बचाने में) मेरी मदद कौन करेगा तो क्या तुम इतना भी ग़ौर नहीं करते और मै तो तुमसे ये नहीं कहता कि मेरे पास खुदाई ख़ज़ाने हैं और न (ये कहता हूँ कि) मै ग़ैब वॉ हूँ (गैब का जानने वाला) और ये कहता हूँ कि मै फरिश्ता हूँ और जो लोग तुम्हारी नज़रों में ज़लील हैं उन्हें मै ये नहीं कहता कि ख़ुदा उनके साथ हरगिज़ भलाई नहीं करेगा उन लोगों के दिलों की बात ख़ुदा ही खूब जानता है और अगर मै ऐसा कहूँ तो मै भी यक़ीनन ज़ालिम हूँ वह लोग कहने लगे ऐ नूह तुम हम से यक़ीनन झगड़े और बहुत झगड़े फिर तुम सच्चे हो तो जिस (अज़ाब) की तुम हमें धमकी देते थे हम पर ला चुको नूह ने कहा अगर चाहेगा तो बस ख़ुदा ही तुम पर अज़ाब लाएगा और तुम लोग किसी तरह उसे हरा नहीं सकते और अगर मै चाहूँ तो तुम्हारी (कितनी ही) ख़ैर ख्वाही (भलाई) करुँ | ||