Surat Yusuf (Joseph) - يوسف
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12:32 قَالَتْ فَذَٰلِكُنَّ ٱلَّذِى لُمْتُنَّنِى فِيهِ وَلَقَدْ رَٰوَدتُّهُۥ عَن نَّفْسِهِۦ فَٱسْتَعْصَمَ وَلَئِن لَّمْ يَفْعَلْ مَآ ءَامُرُهُۥ لَيُسْجَنَنَّ وَلَيَكُونًا مِّنَ ٱلصَّٰغِرِينَ ﴿٣٢﴾ قَالَ رَبِّ ٱلسِّجْنُ أَحَبُّ إِلَىَّ مِمَّا يَدْعُونَنِىٓ إِلَيْهِ وَإِلَّا تَصْرِفْ عَنِّى كَيْدَهُنَّ أَصْبُ إِلَيْهِنَّ وَأَكُن مِّنَ ٱلْجَٰهِلِينَ﴿٣٣﴾ (तब ज़ुलेख़ा उन औरतों से) बोली कि बस ये वही तो है जिसकी बदौलत तुम सब मुझे मलामत (बुरा भला) करती थीं और हाँ बेशक मैं उससे अपना मतलब हासिल करने की खुद उससे आरज़ू मन्द थी मगर ये बचा रहा और जिस काम का मैं हुक्म देती हूँ अगर ये न करेगा तो ज़रुर क़ैद भी किया जाएगा और ज़लील भी होगा (ये सब बातें यूसुफ ने मेरी बारगाह में) अर्ज़ की ऐ मेरे पालने वाले जिस बात की ये औरते मुझ से ख्वाहिश रखती हैं उसकी निस्वत (बदले में) मुझे क़ैद ख़ानों ज्यादा पसन्द है और अगर तू इन औरतों के फ़रेब मुझसे दफा न फरमाएगा तो (शायद) मै उनकी तरफ माएल (झुक) हो जाँऊ ले तो जाओ और जाहिलों से शुमार किया जाऊँ | ||