Surat Taa-Haa (Taa-Haa) - طه
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20:41 وَٱصْطَنَعْتُكَ لِنَفْسِى ﴿٤١﴾ ٱذْهَبْ أَنتَ وَأَخُوكَ بِـَٔايَٰتِى وَلَا تَنِيَا فِى ذِكْرِى﴿٤٢﴾ ٱذْهَبَآ إِلَىٰ فِرْعَوْنَ إِنَّهُۥ طَغَىٰ﴿٤٣﴾ فَقُولَا لَهُۥ قَوْلًا لَّيِّنًا لَّعَلَّهُۥ يَتَذَكَّرُ أَوْ يَخْشَىٰ﴿٤٤﴾ قَالَا رَبَّنَآ إِنَّنَا نَخَافُ أَن يَفْرُطَ عَلَيْنَآ أَوْ أَن يَطْغَىٰ﴿٤٥﴾ قَالَ لَا تَخَافَآ إِنَّنِى مَعَكُمَآ أَسْمَعُ وَأَرَىٰ﴿٤٦﴾ فَأْتِيَاهُ فَقُولَآ إِنَّا رَسُولَا رَبِّكَ فَأَرْسِلْ مَعَنَا بَنِىٓ إِسْرَٰٓءِيلَ وَلَا تُعَذِّبْهُمْ قَدْ جِئْنَٰكَ بِـَٔايَةٍ مِّن رَّبِّكَ وَٱلسَّلَٰمُ عَلَىٰ مَنِ ٱتَّبَعَ ٱلْهُدَىٰٓ﴿٤٧﴾ إِنَّا قَدْ أُوحِىَ إِلَيْنَآ أَنَّ ٱلْعَذَابَ عَلَىٰ مَن كَذَّبَ وَتَوَلَّىٰ﴿٤٨﴾ قَالَ فَمَن رَّبُّكُمَا يَٰمُوسَىٰ﴿٤٩﴾ قَالَ رَبُّنَا ٱلَّذِىٓ أَعْطَىٰ كُلَّ شَىْءٍ خَلْقَهُۥ ثُمَّ هَدَىٰ﴿٥٠﴾ और मैंने तुमको अपनी रिसालत के वास्ते मुन्तख़िब किया तुम अपने भाई समैत हमारे मौजिज़े लेकर जाओ और (देखो) मेरी याद में सुस्ती न करना तुम दोनों फिरऔन के पास जाओ बेशक वह बहुत सरकश हो गया है फिर उससे (जाकर) नरमी से बातें करो ताकि वह नसीहत मान ले या डर जाए दोनों ने अर्ज़ की ऐ हमारे पालने वाले हम डरते हैं कि कहीं वह हम पर ज्यादती (न) कर बैठे या ज्यादा सरकशी कर ले फ़रमाया तुम डरो नहीं मैं तुम्हारे साथ हूँ (सब कुछ) सुनता और देखता हूँ ग़रज़ तुम दोनों उसके पास जाओ और कहो कि हम आप के परवरदिगार के रसूल हैं तो बनी इसराइल को हमारे साथ भेज दीजिए और उन्हें सताइए नहीं हम आपके पास आपके परवरदिगार का मौजिज़ा लेकर आए हैं और जो राहे रास्त की पैरवी करे उसी के लिए सलामती है हमारे पास खुदा की तरफ से ये ''वही'' नाज़िल हुईहै कि यक़ीनन अज़ाब उसी शख्स पर है जो (खुदा की आयतों को) झुठलाए और उसके हुक्म से मुँह मोड़े (ग़रज़ गए और कहा) फिरऔन ने पूछा ऐ मूसा आख़िर तुम दोनों का परवरदिगार कौन है मूसा ने कहा हमारा परवरदिगार वह है जिसने हर चीज़ को उसके (मुनासिब) सूरत अता फरमाई | ||