Surat Aal-i-Imraan (The Family of Imraan) - آل عمران
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3:121 وَإِذْ غَدَوْتَ مِنْ أَهْلِكَ تُبَوِّئُ ٱلْمُؤْمِنِينَ مَقَٰعِدَ لِلْقِتَالِ وَٱللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ ﴿١٢١﴾ إِذْ هَمَّت طَّآئِفَتَانِ مِنكُمْ أَن تَفْشَلَا وَٱللَّهُ وَلِيُّهُمَا وَعَلَى ٱللَّهِ فَلْيَتَوَكَّلِ ٱلْمُؤْمِنُونَ﴿١٢٢﴾ وَلَقَدْ نَصَرَكُمُ ٱللَّهُ بِبَدْرٍ وَأَنتُمْ أَذِلَّةٌ فَٱتَّقُوا۟ ٱللَّهَ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ﴿١٢٣﴾ और (ऐ रसूल) एक वक्त वो भी था जब तुम अपने बाल बच्चों से तड़के ही निकल खड़े हुए और मोमिनीन को लड़ाई के मोर्चों पर बिठा रहे थे और खुदा सब कुछ जानता और सुनता है ये उस वक्त क़ा वाक़या है जब तुममें से दो गिरोहों ने ठान लिया था कि पसपाई करें और फिर (सॅभल गए) क्योंकि ख़ुदा तो उनका सरपरस्त था और मोमिनीन को ख़ुदा ही पर भरोसा रखना चाहिये यक़ीनन ख़ुदा ने जंगे बदर में तुम्हारी मदद की (बावजूद के) तुम (दुश्मन के मुक़ाबले में) बिल्कुल बे हक़ीक़त थे (फिर भी) ख़ुदा ने फतेह दी | ||