Surat Saad (The letter Saad) - ص
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38:50 جَنَّٰتِ عَدْنٍ مُّفَتَّحَةً لَّهُمُ ٱلْأَبْوَٰبُ ﴿٥٠﴾ مُتَّكِـِٔينَ فِيهَا يَدْعُونَ فِيهَا بِفَٰكِهَةٍ كَثِيرَةٍ وَشَرَابٍ﴿٥١﴾ وَعِندَهُمْ قَٰصِرَٰتُ ٱلطَّرْفِ أَتْرَابٌ﴿٥٢﴾ هَٰذَا مَا تُوعَدُونَ لِيَوْمِ ٱلْحِسَابِ﴿٥٣﴾ إِنَّ هَٰذَا لَرِزْقُنَا مَا لَهُۥ مِن نَّفَادٍ﴿٥٤﴾ (यानि) हमेशा रहने के (बेहिश्त के) सदाबहार बाग़ात जिनके दरवाज़े उनके लिए (बराबर) खुले होगें और ये लोग वहाँ तकिये लगाए हुए (चैन से बैठे) होगें वहाँ (खुद्दामे बेहिश्त से) कसरत से मेवे और शराब मँगवाएँगे और उनके पहलू में नीची नज़रों वाली (शरमीली) कमसिन बीवियाँ होगी (मोमिनों) ये वह चीज़ हैं जिनका हिसाब के दिन (क़यामत) के लिए तुमसे वायदा किया जाता है बेशक ये हमारी (दी हुई) रोज़ी है जो कभी तमाम न होगी | ||