Surat Ad-Dukhaan (The Smoke) - الدخان
Home > > >
44:51 إِنَّ ٱلْمُتَّقِينَ فِى مَقَامٍ أَمِينٍ ﴿٥١﴾ فِى جَنَّٰتٍ وَعُيُونٍ﴿٥٢﴾ يَلْبَسُونَ مِن سُندُسٍ وَإِسْتَبْرَقٍ مُّتَقَٰبِلِينَ﴿٥٣﴾ كَذَٰلِكَ وَزَوَّجْنَٰهُم بِحُورٍ عِينٍ﴿٥٤﴾ يَدْعُونَ فِيهَا بِكُلِّ فَٰكِهَةٍ ءَامِنِينَ﴿٥٥﴾ لَا يَذُوقُونَ فِيهَا ٱلْمَوْتَ إِلَّا ٱلْمَوْتَةَ ٱلْأُولَىٰ وَوَقَىٰهُمْ عَذَابَ ٱلْجَحِيمِ﴿٥٦﴾ فَضْلًا مِّن رَّبِّكَ ذَٰلِكَ هُوَ ٱلْفَوْزُ ٱلْعَظِيمُ﴿٥٧﴾ बेशक परहेज़गार लोग अमन की जगह (यानि) बाग़ों और चश्मों में होंगे रेशम की कभी बारीक़ और कभी दबीज़ पोशाकें पहने हुए एक दूसरे के आमने सामने बैठे होंगे ऐसा ही होगा और हम बड़ी बड़ी ऑंखों वाली हूरों से उनके जोड़े लगा देंगे वहाँ इत्मेनान से हर किस्म के मेवे मंगवा कर खायेंगे वहाँ पहली दफ़ा की मौत के सिवा उनको मौत की तलख़ी चख़नी ही न पड़ेगी और ख़ुदा उनको दोज़ख़ के अज़ाब से महफूज़ रखेगा (ये) तुम्हारे परवरदिगार का फज़ल है यही तो बड़ी कामयाबी है | ||