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BackSurat Al-A'raaf (The Heights) - الأعراف

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7:131

فَإِذَا جَآءَتْهُمُ ٱلْحَسَنَةُ قَالُوا۟ لَنَا هَٰذِهِۦ وَإِن تُصِبْهُمْ سَيِّئَةٌ يَطَّيَّرُوا۟ بِمُوسَىٰ وَمَن مَّعَهُۥٓ أَلَآ إِنَّمَا طَٰٓئِرُهُمْ عِندَ ٱللَّهِ وَلَٰكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ ﴿١٣١﴾ وَقَالُوا۟ مَهْمَا تَأْتِنَا بِهِۦ مِنْ ءَايَةٍ لِّتَسْحَرَنَا بِهَا فَمَا نَحْنُ لَكَ بِمُؤْمِنِينَ﴿١٣٢﴾ فَأَرْسَلْنَا عَلَيْهِمُ ٱلطُّوفَانَ وَٱلْجَرَادَ وَٱلْقُمَّلَ وَٱلضَّفَادِعَ وَٱلدَّمَ ءَايَٰتٍ مُّفَصَّلَٰتٍ فَٱسْتَكْبَرُوا۟ وَكَانُوا۟ قَوْمًا مُّجْرِمِينَ﴿١٣٣﴾ وَلَمَّا وَقَعَ عَلَيْهِمُ ٱلرِّجْزُ قَالُوا۟ يَٰمُوسَى ٱدْعُ لَنَا رَبَّكَ بِمَا عَهِدَ عِندَكَ لَئِن كَشَفْتَ عَنَّا ٱلرِّجْزَ لَنُؤْمِنَنَّ لَكَ وَلَنُرْسِلَنَّ مَعَكَ بَنِىٓ إِسْرَٰٓءِيلَ﴿١٣٤﴾ فَلَمَّا كَشَفْنَا عَنْهُمُ ٱلرِّجْزَ إِلَىٰٓ أَجَلٍ هُم بَٰلِغُوهُ إِذَا هُمْ يَنكُثُونَ﴿١٣٥﴾ فَٱنتَقَمْنَا مِنْهُمْ فَأَغْرَقْنَٰهُمْ فِى ٱلْيَمِّ بِأَنَّهُمْ كَذَّبُوا۟ بِـَٔايَٰتِنَا وَكَانُوا۟ عَنْهَا غَٰفِلِينَ﴿١٣٦﴾ وَأَوْرَثْنَا ٱلْقَوْمَ ٱلَّذِينَ كَانُوا۟ يُسْتَضْعَفُونَ مَشَٰرِقَ ٱلْأَرْضِ وَمَغَٰرِبَهَا ٱلَّتِى بَٰرَكْنَا فِيهَا وَتَمَّتْ كَلِمَتُ رَبِّكَ ٱلْحُسْنَىٰ عَلَىٰ بَنِىٓ إِسْرَٰٓءِيلَ بِمَا صَبَرُوا۟ وَدَمَّرْنَا مَا كَانَ يَصْنَعُ فِرْعَوْنُ وَقَوْمُهُۥ وَمَا كَانُوا۟ يَعْرِشُونَ﴿١٣٧﴾ وَجَٰوَزْنَا بِبَنِىٓ إِسْرَٰٓءِيلَ ٱلْبَحْرَ فَأَتَوْا۟ عَلَىٰ قَوْمٍ يَعْكُفُونَ عَلَىٰٓ أَصْنَامٍ لَّهُمْ قَالُوا۟ يَٰمُوسَى ٱجْعَل لَّنَآ إِلَٰهًا كَمَا لَهُمْ ءَالِهَةٌ قَالَ إِنَّكُمْ قَوْمٌ تَجْهَلُونَ﴿١٣٨﴾ إِنَّ هَٰٓؤُلَآءِ مُتَبَّرٌ مَّا هُمْ فِيهِ وَبَٰطِلٌ مَّا كَانُوا۟ يَعْمَلُونَ﴿١٣٩﴾ قَالَ أَغَيْرَ ٱللَّهِ أَبْغِيكُمْ إِلَٰهًا وَهُوَ فَضَّلَكُمْ عَلَى ٱلْعَٰلَمِينَ﴿١٤٠﴾

तो जब उन्हें कोई राहत मिलती तो कहने लगते कि ये तो हमारे लिए सज़ावार ही है और जब उन्हें कोई मुसीबत पहुँचती तो मूसा और उनके साथियों की बदशुगूनी समझते देखो उनकी बदशुगूनी तो ख़ुदा के हा (लिखी जा चुकी) थी मगर बहुतेरे लोग नही जानते हैं और फिरऔन के लोग मूसा से एक मरतबा कहने लगे कि तुम हम पर जादू करने के लिए चाहे जितनी निशानियाँ लाओ मगर हम तुम पर किसी तरह ईमान नहीं लाएँगें तब हमने उन पर (पानी को) तूफान और टिड़डियाँ और जुएं और मेंढ़कों और खून (का अज़ाब भेजा कि सब जुदा जुदा (हमारी कुदरत की) निशानियाँ थी उस पर भी वह लोग तकब्बुर ही करते रहें और वह लोग गुनेहगार तो थे ही (और जब उन पर अज़ाब आ पड़ता तो कहने लगते कि ऐ मूसा तुम से जो ख़ुदा ने (क़बूल दुआ का) अहद किया है उसी की उम्मीद पर अपने ख़ुदा से दुआ माँगों और अगर तुमने हम से अज़ाब को टाल दिया तो हम ज़रूर भेज देगें फिर जब हम उनसे उस वक्त क़े वास्ते जिस तक वह ज़रूर पहुँचते अज़ाब को हटा लेते तो फिर फौरन बद अहदी करने लगते तब आख़िर हमने उनसे (उनकी शरारत का) बदला लिया तो चूंकि वह लोग हमारी आयतों को झुटलाते थे और उनसे ग़ाफिल रहते थे हमने उन्हें दरिया में डुबो दिया और जिन बेचारों को ये लोग कमज़ोर समझते थे उन्हीं को (मुल्क शाम की) ज़मीन का जिसमें हमने (ज़रखेज़ होने की) बरकत दी थी उसके पूरब पश्चिम (सब) का वारिस (मालिक) बना दिया और चूंकि बनी इसराईल नें (फिरऔन के ज़ालिमों) पर सब्र किया था इसलिए तुम्हारे परवरदिगार का नेक वायदा (जो उसने बनी इसराइल से किया था) पूरा हो गया और जो कुछ फिरऔन और उसकी क़ौम के लोग करते थे और जो ऊँची ऊँची इमारते बनाते थे सब हमने बरबाद कर दी और हमने बनी ईसराइल को दरिया के उस पार उतार दिया तो एक ऐसे लोगों पर से गुज़रे जो अपने (हाथों से बनाए हुए) बुतों की परसतिश पर जमा बैठे थे (तो उनको देख कर बनी ईसराइल से) कहने लगे ऐ मूसा जैसे उन लोगों के माबूद (बुत) हैं वैसे ही हमारे लिए भी एक माबूद बनाओ मूसा ने जवाब दिया कि तुम लोग जाहिल लोग हो (अरे कमबख्तो) ये लोग जिस मज़हब पर हैं (वह यक़ीनी बरबाद होकर रहेगा) और जो अमल ये लोग कर रहे हैं (वह सब मिटिया मेट हो जाएगा) (मूसा ने ये भी) कहा क्या तुम्हारा ये मतलब है कि ख़ुदा को छोड़कर मै दूसरे को तुम्हारा माबूद तलाश करू

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