Surat Al-Fajr (The Dawn) - الفجر
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89:15 فَأَمَّا ٱلْإِنسَٰنُ إِذَا مَا ٱبْتَلَىٰهُ رَبُّهُۥ فَأَكْرَمَهُۥ وَنَعَّمَهُۥ فَيَقُولُ رَبِّىٓ أَكْرَمَنِ ﴿١٥﴾ وَأَمَّآ إِذَا مَا ٱبْتَلَىٰهُ فَقَدَرَ عَلَيْهِ رِزْقَهُۥ فَيَقُولُ رَبِّىٓ أَهَٰنَنِ﴿١٦﴾ लेकिन इन्सान जब उसको उसका परवरदिगार (इस तरह) आज़माता है कि उसको इज्ज़त व नेअमत देता है, तो कहता है कि मेरे परवरदिगार ने मुझे इज्ज़त दी है मगर जब उसको (इस तरह) आज़माता है कि उस पर रोज़ी को तंग कर देता है बोल उठता है कि मेरे परवरदिगार ने मुझे ज़लील किया | ||