Surat At-Tawba (The Repentance) - التوبة
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9:90 وَجَآءَ ٱلْمُعَذِّرُونَ مِنَ ٱلْأَعْرَابِ لِيُؤْذَنَ لَهُمْ وَقَعَدَ ٱلَّذِينَ كَذَبُوا۟ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ سَيُصِيبُ ٱلَّذِينَ كَفَرُوا۟ مِنْهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ ﴿٩٠﴾ لَّيْسَ عَلَى ٱلضُّعَفَآءِ وَلَا عَلَى ٱلْمَرْضَىٰ وَلَا عَلَى ٱلَّذِينَ لَا يَجِدُونَ مَا يُنفِقُونَ حَرَجٌ إِذَا نَصَحُوا۟ لِلَّهِ وَرَسُولِهِۦ مَا عَلَى ٱلْمُحْسِنِينَ مِن سَبِيلٍ وَٱللَّهُ غَفُورٌ رَّحِيمٌ﴿٩١﴾ وَلَا عَلَى ٱلَّذِينَ إِذَا مَآ أَتَوْكَ لِتَحْمِلَهُمْ قُلْتَ لَآ أَجِدُ مَآ أَحْمِلُكُمْ عَلَيْهِ تَوَلَّوا۟ وَّأَعْيُنُهُمْ تَفِيضُ مِنَ ٱلدَّمْعِ حَزَنًا أَلَّا يَجِدُوا۟ مَا يُنفِقُونَ﴿٩٢﴾ إِنَّمَا ٱلسَّبِيلُ عَلَى ٱلَّذِينَ يَسْتَـْٔذِنُونَكَ وَهُمْ أَغْنِيَآءُ رَضُوا۟ بِأَن يَكُونُوا۟ مَعَ ٱلْخَوَالِفِ وَطَبَعَ ٱللَّهُ عَلَىٰ قُلُوبِهِمْ فَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ﴿٩٣﴾ يَعْتَذِرُونَ إِلَيْكُمْ إِذَا رَجَعْتُمْ إِلَيْهِمْ قُل لَّا تَعْتَذِرُوا۟ لَن نُّؤْمِنَ لَكُمْ قَدْ نَبَّأَنَا ٱللَّهُ مِنْ أَخْبَارِكُمْ وَسَيَرَى ٱللَّهُ عَمَلَكُمْ وَرَسُولُهُۥ ثُمَّ تُرَدُّونَ إِلَىٰ عَٰلِمِ ٱلْغَيْبِ وَٱلشَّهَٰدَةِ فَيُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ﴿٩٤﴾ سَيَحْلِفُونَ بِٱللَّهِ لَكُمْ إِذَا ٱنقَلَبْتُمْ إِلَيْهِمْ لِتُعْرِضُوا۟ عَنْهُمْ فَأَعْرِضُوا۟ عَنْهُمْ إِنَّهُمْ رِجْسٌ وَمَأْوَىٰهُمْ جَهَنَّمُ جَزَآءًۢ بِمَا كَانُوا۟ يَكْسِبُونَ﴿٩٥﴾ يَحْلِفُونَ لَكُمْ لِتَرْضَوْا۟ عَنْهُمْ فَإِن تَرْضَوْا۟ عَنْهُمْ فَإِنَّ ٱللَّهَ لَا يَرْضَىٰ عَنِ ٱلْقَوْمِ ٱلْفَٰسِقِينَ﴿٩٦﴾ ٱلْأَعْرَابُ أَشَدُّ كُفْرًا وَنِفَاقًا وَأَجْدَرُ أَلَّا يَعْلَمُوا۟ حُدُودَ مَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ عَلَىٰ رَسُولِهِۦ وَٱللَّهُ عَلِيمٌ حَكِيمٌ﴿٩٧﴾ وَمِنَ ٱلْأَعْرَابِ مَن يَتَّخِذُ مَا يُنفِقُ مَغْرَمًا وَيَتَرَبَّصُ بِكُمُ ٱلدَّوَآئِرَ عَلَيْهِمْ دَآئِرَةُ ٱلسَّوْءِ وَٱللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ﴿٩٨﴾ وَمِنَ ٱلْأَعْرَابِ مَن يُؤْمِنُ بِٱللَّهِ وَٱلْيَوْمِ ٱلْءَاخِرِ وَيَتَّخِذُ مَا يُنفِقُ قُرُبَٰتٍ عِندَ ٱللَّهِ وَصَلَوَٰتِ ٱلرَّسُولِ أَلَآ إِنَّهَا قُرْبَةٌ لَّهُمْ سَيُدْخِلُهُمُ ٱللَّهُ فِى رَحْمَتِهِۦٓ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٌ رَّحِيمٌ﴿٩٩﴾ और (तुम्हारे पास) कुछ हीला करने वाले गवार देहाती (भी) आ मौजदू हुए ताकि उनको भी (पीछे रह जाने की) इजाज़त दी जाए और जिन लोगों ने ख़ुदा और उसके रसूल से झूठ कहा था वह (घर में) बैठ रहे (आए तक नहीं) उनमें से जिन लोगों ने कुफ़्र एख्तेयार किया अनक़रीब ही उन पर दर्दनाक अज़ाब आ पहुँचेगा (ऐ रसूल जिहाद में न जाने का) न तो कमज़ोरों पर कुछ गुनाह है न बीमारों पर और न उन लोगों पर जो कुछ नहीं पाते कि ख़र्च करें बशर्ते कि ये लोग ख़ुदा और उसके रसूल की ख़ैर ख्वाही करें नेकी करने वालों पर (इल्ज़ाम की) कोई सबील नहीं और ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है और न उन्हीं लोगों पर कोई इल्ज़ाम है जो तुम्हारे पास आए कि तुम उनके लिए सवारी बाहम पहुँचा दो और तुमने कहा कि मेरे पास (तो कोई सवारी) मौजूद नहीं कि तुमको उस पर सवार करूँ तो वह लोग (मजबूरन) फिर गए और हसरत (व अफसोस) उसे उस ग़म में कि उन को ख़र्च मयस्सर न आया उनकी ऑंखों से ऑंसू जारी थे (इल्ज़ाम की) सबील तो सिर्फ उन्हीं लोगों पर है जिन्होंने बावजूद मालदार होने के तुमसे (जिहाद में) न जाने की इजाज़त चाही और उनके पीछे रह जाने वाले (औरतों, बच्चों) के साथ रहना पसन्द आया और ख़ुदा ने उनके दिलों पर (गोया) मोहर कर दी है तो ये लोग कुछ नहीं जानते जब तुम उनके पास (जिहाद से लौट कर) वापस आओगे तो ये (मुनाफिक़ीन) तुमसे (तरह तरह) की माअज़रत करेंगे (ऐ रसूल) तुम कह दो कि बातें न बनाओ हम हरग़िज़ तुम्हारी बात न मानेंगे (क्योंकि) हमे तो ख़ुदा ने तुम्हारे हालात से आगाह कर दिया है अनक़ीरब ख़ुदा और उसका रसूल तुम्हारी कारस्तानी को मुलाहज़ा फरमाएगें फिर तुम ज़ाहिर व बातिन के जानने वालों (ख़ुदा) की हुज़ूरी में लौटा दिए जाओगे तो जो कुछ तुम (दुनिया में) करते थे (ज़र्रा ज़र्रा) बता देगा जब तुम उनके पास (जिहाद से) वापस आओगे तो तुम्हारे सामने ख़ुदा की क़समें खाएगें ताकि तुम उनसे दरगुज़र करो तो तुम उनकी तरफ से मुँह फेर लो बेशक ये लोग नापाक हैं और उनका ठिकाना जहन्नुम है (ये) सज़ा है उसकी जो ये (दुनिया में) किया करते थे तुम्हारे सामने ये लोग क़समें खाते हैं ताकि तुम उनसे राज़ी हो (भी) जाओ तो ख़ुदा बदकार लोगों से हरगिज़ कभी राज़ी नहीं होगा (ये) अरब के गॅवार देहाती कुफ्र व निफाक़ में बड़े सख्त हैं और इसी क़ाबिल हैं कि जो किताब ख़ुदा ने अपने रसूल पर नाज़िल फरमाई है उसके एहक़ाम न जानें और ख़ुदा तो बड़ा दाना हकीम है और कुछ गॅवार देहाती (ऐसे भी हैं कि जो कुछ ख़ुदा की) राह में खर्च करते हैं उसे तावान (जुर्माना) समझते हैं और तुम्हारे हक़ में (ज़माने की) गर्दिशों के मुन्तज़िर (इन्तेज़ार में) हैं उन्हीं पर (ज़माने की) बुरी गर्दिश पड़े और ख़ुदा तो सब कुछ सुनता जानता है और कुछ देहाती तो ऐसे भी हैं जो ख़ुदा और आख़िरत पर ईमान रखते हैं और जो कुछ खर्च करते है उसे ख़ुदा की (बारगाह में) नज़दीकी और रसूल की दुआओं का ज़रिया समझते हैं आगाह रहो वाक़ई ये (ख़ैरात) ज़रूर उनके तक़र्रुब (क़रीब होने का) का बाइस है ख़ुदा उन्हें बहुत जल्द अपनी रहमत में दाख़िल करेगा बेशक ख़ुदा बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है | ||