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His Supplication in Seeking Asylum with God

دُعَاؤُهُ فِي اللَّجَإِ إِلَى اللَّهِ تَعَالَى

اللّهُمَّ إن تَشَأْ تعفُ عَنّا فَبِفضْلِكَ ،
बारे इलाहा! अगर तू चाहे के हमें माफ़ कर दे तो यह तेरे फ़ज़्ल के सबब से है
وَانْ تَشَأْ تُعَذِّبْنا فَبَعدْلِكَ. فَسَهِّلْ لَنَا عَفْوَكَ بِمنِّكَ ،
और अगर तू चाहे के हमें सज़ा दे तो यह तेरे अद्ल की रू से है। तू अपने शेवए एहसान के पेशे नज़र हमें पूरी माफ़ी दे
وَأَجِرْنَا مِنْ عَذَابِكَ بِتَجاوُزكَ; فَإنَّهُ لاَ طاقَةَ لَنَا بَعدلِكَ،
और हमारे गुनाहों से दरगुज़र करके अपने अज़ाब से बचा ले। इसलिये के हमें तेरे अद्ल की ताब नहीं है
وَلاَ نجاةَ لأحَد مِنّا دُوْنَ عَفْوِكَ.
और तेरे अफ़ो के बग़ैर हम में से किसी एक की भी निजात नहीं हो सकती।
يا غَنِيَّ الأغْنياء هَا نَحَنُ عِبادُكَ بين يدَيكَ
ऐ बे नियाज़ों के बे नियाज़! हाँ तो फिर हम सब तेरे बन्दे हैं जो तेरे हुज़ूर खड़े हैं।
وَأَنَا أَفقَرُ الفْقَراء إليْكَ فَأجْبُرْ فاقَتَنا بِوُسْعِكَ ،
और मैं सब मोहताजों से बढ़ कर तेरा मोहताज हूँ। लेहाज़ा अपने भरे ख़ज़ाने से हमारे दामने फ़क्ऱ व एहतियाज को भर दे,
ولا تَقْطَعَ رَجَاءنا بِمَنْعِكَ فَتَكُوْنَ قد أَشْقَيْتَ مَنِ اسْتَسْعَدَ بِكَ ،
और अपने दरवाज़े से रद्द करके हमारी उम्मीदों को क़तअ न कर, वरना जो तुझसे ख़ुशहाली का तालिब था वह तेरे हाँ से हरमाँनसीब होगा
وَجَرَمْتَ مَنِ اسْتَرْفَدَ فَضْلَكَ.
और जो तेरे फ़ज़्ल से बख़्शिश व अता का ख़्वास्तगार था वह तेरे दर से महरूम रहेगा।
فَإلى مَنْ حيْنئذ مُنْقَلَبُنَا عَنْكَ ،
तो अब हम तुझे छोड़कर किसके पास जाएँ
وإلى أيْنَ مَذهَبُنَا عن بَابِكَ ،
और तेरा दर छोड़कर किधर का रूख़ करें।
سُبْحَنَكَ نَحْنُ المضْطُّرون الذّينَ أَوْجَبْتَ إجابَتَهُمْ ،
तू इससे मुनज़्ज़ा है (के हमें ठुकरा दे जबके) हम ही वह आजिज़ व बेबस हैं जिनकी दुआएं क़ुबूल करना तूने अपने ऊपर लाज़िम कर लिया है
وَأهْلُ السُّوْء الذّيْنَ وَعَدْتَ الْكَشْفَ عَنْهُمْ.
और वह दर्दमन्द हैं जिनके दुख दूर करने का तूने वादा किया है,
وَأَشْبَـهُ الأَشْياءِ بِمَشِيَّتِـكَ ،
और तमाम चीज़ों में तेरे मक़तज़ाए मशीयत के मनासिब
وَأَوْلَى الأمُورِ بِكَ فِيْ عَظَمَتِكَ رَحْمَةُ مَنِ اسْتَرْحَمَكَ،
और तमाम उमूर में तेरी बुज़ुर्गी व अज़मत के शायान यह है के तुझसे रहम की दरख़्वास्त करे तू उस पर रहम फ़रमाए
وَغَوْثُ مَنِ اسْتَغَاثَ بِكَ، فَارْحَمْ تَضَرُّعَنَا إلَيْكَ،
और जो तुझसे फ़रयादरसी चाहे तू उसकी फ़रयाद रसी करे। तू अब अपनी बारगाह में हमारी तज़र्रू व ज़ारी पर रहम फ़रमा।
وَأَغْنِنَا إذْ طَرَحْنَـا أَنْفُسَنَا بَيْنَ يَـدَيْكَ.
और जबके हमने अपने को तेरे आगे (ख़ाके मुज़ल्लत पर) डाल दिया है तो हमें (फ़िक्र व ग़म से) निजात दे।
أللَّهُمَّ إنَّ الشَّيْطَانَ قَدْ شمِتَ بِنَا إذْ شَايَعْنَاهُ عَلَى مَعْصِيَتِكَ،
बारे इलाहा! जब हमने तेरी मासीयत में शैतान की पैरवी की तो उसने (हमारी इस कमज़ोरी पर) इज़हारे मसर्रत किया।
فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ
तू मोहम्मद (स0) और उनकी आले (अ0) अतहर पर दुरूद भेज।
وَلا تُشْمِتْهُ بِنَا بَعْدَ تَرْكِنَا إيَّاهُ لَكَ،
और जब हमने तेरी ख़ातिर उसे छोड़ दिया और उससे रूगर्दानी करके तुझसे लौ लगा चुके हैं
وَرَغْبَتِنَا عَنْهُ إلَيْكَ.
तो कोई ऐसी उफ़ताद न पड़े के वह हम पर शमातत करे।’’

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