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<-Blessing upon Muhammad and his Household

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After this praise of God he (upon him be peace) would supplicate by calling down blessings upon God's Messenger (God bless him and his Household)

الصَّلَاةُ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ

وَالْحَمْدُ للهِ الَّذِي مَنَّ عَلَيْنَا
तमाम तारीफ़ उस अल्लाह तआला के लिये हैं जिसने हम पर वह एहसान फ़रमाया
بِمُحَمَّد نَبِيِّهِ صَلَّى الله عَلَيْهِ وَآلِهِ
अपने पैग़म्बर (स0) मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम की बअसत से
دُونَ الاُمَمِ الْمَاضِيَةِ وَالْقُـرُونِ السَّالِفَةِ
जो न गुज़िश्ता उम्मतों पर किया और न पहले लोगों पर
بِقُدْرَتِهِ الَّتِي لاَ تَعْجِزُ عَنْ شَيْء وَ إنْ عَظُمَ
अपनी इस क़ुदरत की कार फ़रमाई से जो किसी शै से आजिज़ व दरमान्दा नहीं होती अगरचे वह कितनी ही बड़ी हो
وَ لا يَفُوتُهَا شَيءٌ وَإنْ لَطُفَ،
और कोई चीज़ उसके क़ब्ज़े से निकलने नहीं पाती अगरचे वह कितनी ही लतीफ़ व नाज़ुक हो
فَخَتَمَ بِنَاعَلَى جَمِيع مَنْ ذَرَأَ
उसने अपने मख़लूक़ात में हमें आखि़री उम्मत क़रार दिया
وَ جَعَلَنَا شُهَدَاءَ عَلَى مَنْ جَحَدَ
और इन्कार करने वालों पर गवाह बनाया
وَكَثَّرَنا بِمَنِّهِ عَلَى مَنْ قَلَّ
और अपने लुत्फ़ व करम से कम तादाद वालों के मुक़ाबले में हमें कसरत दी
اللّهمَّ فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّد أَمِينِكَ عَلَى وَحْيِكَ
ऐ अल्लाह! तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर जो तेरी वही के अमानतदार
وَنَجِيبِكَ مِنْ خَلْقِكَ
तमाम मख़लूक़ात में तेरे बरगुज़ीदा
وَ صَفِيِّكَ مِنْ عِبَادِكَ
तेरे बन्दों में पसन्दीदा
إمَامِ الرَّحْمَةِ وَقَائِدِ الْخَيْرِ
रहमत के पेशवा, ख़ैर व सआदत के पेशरौ
وَ مِفْتَاحِ الْبَرَكَةِ
और बरकत का सरचश्मा थे
كَمَا نَصَبَ لاَِمْرِكَ نَفْسَهُ
जिस तरह उन्होंने तेरी शरीयत की ख़ातिर अपने को मज़बूती से जमाया
وَ عَرَّضَ فِيْكَ لِلْمَكْرُوهِ بَدَنَهُ
और तेरी राह में अपने जिस्म को हर तरह के आज़ार का निशाना बनाया
وَكَاشَفَ فِي الدُّعَآءِ إلَيْكَ حَامَّتَهُ
और तेरी तरफ़ दावत देने के सिलसिले में अपने अज़ीज़ों से दुश्मनी का मुज़ाहिरा किया,
وَحَارَبَ فِي رِضَاكَ أسْرَتَهُ
और तेरी रज़ामन्दी के लिये अपने क़ौम क़बीले से जंग की
وَقَطَعَ فِىْ إحْياءِ دِينِكَ رَحِمَهُ
और तेरे दीन को ज़िन्दा करने के लिये सब रिश्ते नाते क़ता कर लिये,
وَاقصَى الادْنَيْنَ عَلَى جُحُـودِهِمْ
नज़दीक के रिश्तेदारों को इन्कार की वजह से दूर कर दिया
وَقَرَّبَ الاقْصَيْنَ عَلَى اسْتِجَابَتِهِمْ لَكَ
और दूर वालों को इक़रार की वजह से क़रीब किया,
وَ والَى فِيكَ الابْعَدِينَ
और तेरी वजह से दूर वालों से दोस्ती
وَعَادى فِيكَ الاقْرَبِينَ
और नज़दीक वालों से दुश्मनी रखी
وَأدْأبَ نَفْسَهُ فِي تَبْلِيغِ رِسَالَتِكَ
और तेरा पैग़ाम पहुंचाने के लिये तकलीफ़ें उठाईं
وَأَتْعَبَهَا بِالدُّعآءِ إلَى مِلَّتِكَ
और दीन की तरफ़ दावत देने के सिलसिले में ज़हमतें बरदाश्त कीं
وَشَغَلَهَا بِالنُّصْحِ لاَِهْلِ دَعْوَتِكَ
और अपने नफ़्स को उन लोगों के पन्द व नसीहत करने में मसरूफ़ रखा जिन्होंने तेरी दावत को क़ुबूल किया,
وَهَاجَرَ إلَى بِلاَدِ الْغُرْبَةِ
और हिजरत की परदेस की सरज़मीन और दूर दराज़ मक़ाम की तरफ़
وَمحَلِّ النَّأيِ عَنْ مَوْطِنِ رَحْلِهِ
अपने महल सुकूनत व मक़ामे रिहाइश और
وَمَوْضِـعِ رِجْلِهِ وَمَسْقَطِ رَأسِهِ
जाए विलादत व वतन मालूफ़ से
وَمَأنَسِ نَفْسِهِ إرَادَةً مِنْهُ لاعْزَازِ دِيْنِكَ
महज़ इस मक़सद से के तेरे दीन को मज़बूत करें
واسْتِنْصَاراً عَلَى أَهْلِ الْكُفْرِ بِكَ
और तुझसे कुफ्र इख़्तिेयार करने वालों पर ग़लबा पाएं,
حَتّى اسْتَتَبَّ لَهُ مَا حَاوَلَ فِي أَعْدَائِكَ
यहाँ तक के तेरे दुश्मनों के बारे में जो उन्होंने चाहा था वह मुकम्मल हो गया
وَاسْتَتَمَّ لَهُ مَا دَبَّرَ فِي أوْلِيآئِكَ
तेरे दोस्तों (को जंग व जेहाद पर आमादा करने) की तदबीरें कामिल हो गईं
فَنَهَدَ إلَيْهِمْ مُسْتَفْتِحاً بِعَوْنِكَ
तो वह तेरी नुसरत से फतेह व कामरानी चाहते हुए दुश्मनों के मुक़ाबले के लिये उठ खड़े हुए
وَمُتَقَوِّياً عَلَى ضَعْفِهِ بِنَصْرِكَ
अपनी कमज़ोरी के बावजूद तेरी मदद की पुश्तपनाही पर
فَغَزَاهُمْ فِي عُقْرِ دِيَارِهِمْ
और उनके घरों के हुदूद में उनसे लड़े
وَهَجَمَ عَلَيْهِمْ فِي بُحْبُوحَةِ قَرَارِهِمْ
और उनकी क़यामगाहों के वुसत में उन पर टूट पड़े
حَتّى ظَهَر أَمْرُكَ
यहाँ तक के तेरा दीन ग़ालिब
وَعَلَتْ كَلِمَتُكَ وَلَوْ كَرِهَ الْمُشْرِكُونَ
और तेरा कलमा बलन्द होकर रहा, अगरचे मुशरिक उसे नापसन्द करते रहे
اللَهُمَّ فَارْفَعْهُ بِمَا كَدَحَ فِيكَ
ऐ अल्लाह! उन्होंने तेरी ख़ातिर जो कोशिशें कीं हैं
إلَى الدَّرَجَةِ الْعُلْيَا مِنْ جَنَّتِكَ
उनके एवज़ उन्हें जन्नत में ऐसा बलन्द दरजा अता कर
حَتَّى لاَ يُسَاوَى فِي مَنْزِلَة
के कोई मरतबे में उनके बराबर न हो सके
وَلا يُكَاْفَأَ فِي مَرْتَبَة
और न मन्ज़िलत में उनका हमपाया क़रार पा सके,
وَلاَ يُوَازِيَهُ لَدَيْكَ مَلَكٌ مُقَرَّبٌ وَلا نبيٌّ مُرْسَلٌ
और न कोई मुक़र्रब बारगाह फ़रिश्ते और न कोई फर्सतादा पैग़म्बर तेरे नज़दीक उनका हमसर हो सके
وَعَرِّفْهُ فِي أهْلِهِ الطّاهِرِينَ
और उनके अहलेबैत (अ0) अतहार के बारे में
وَاُمَّتِهِالْمُؤْمِنِينَ مِنْ حُسْنِ الشَّفَاعَةِ
और मोमेनीन की जमाअत के बारे में जिस क़ाबिले क़ुबूल शिफ़ाअत का
أجَلَّ مَا وَعَدْتَهُ يَا نَافِذَ الْعِدَةِ
तूने उनसे वादा फ़रमाया है उस वादे से बढ़कर उन्हें अता फ़रमा
وَافِىَ الْقَوْلِ يَا مُبَدِّلَ السّيِّئات بِأضْعَافِهَا مِنَ الْحَسَنَاتِ
ऐ वादे के नाफ़िज़ करने वाले क़ौल के पूरा करने और बुराइयों को कई गुना ज़ायद अच्छाइयों से बदल देने वाले
إنَّكَ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِيمِ الْجَوَادُ اَلْكَرِيمُ
बेशक तू फ़ज़्ले अज़ीम का मालिक है।

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