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His Supplication in Confession and in Seeking Repentance toward God

دُعَاؤُهُ فِي الِاعْتِرَافِ و طَلَبِ التَوبَةِ الى الله تعالى

أَللَّهُمَّ إنَّهُ يَحْجُبُنِي عَنْ مَسْأَلَتِكَ خِلاَلٌ ثَلاثٌ
ऐ अल्लाह! मुझे तीन बातें तेरी बारगाह में सवाल करने से रोकती हैं
وَتَحْدُونِي عَلَيْهَا خَلَّةٌ وَاحِدَةٌ ،
और एक बात इस पर आमादा करती है
يَحْجُبُنِي أَمْرٌ أَمَرْتَ بِهِ فَأَبْطَأتُ عَنْهُ،
जो बातें रोकती हैं उनमें से एक यह है के जिस अम्र का तूने हुक्म दिया मैंने उसकी तामील में सुस्ती की
وَنَهْيٌ نَهَيْتَنِي عَنْهُ فَأَسْرَعْتُ إلَيْهِ،
दूसरे यह के जिस चीज़ से तूने मना किया उसकी तरफ़ तेज़ी से बढ़ा।
وَنِعْمَةٌ أَنْعَمْتَ بِهَا عَلَيَّ فَقَصَّرْتُ فِي شُكْرِهَـا.
तीसरे जो नेमतें तूने मुझे अता कीं उनका शुक्रिया अदा करने में कोताही की
وَيَحْدُونِي عَلَى مَسْأَلَتِكَ تَفَضُّلُكَ
और जो बात मुझे सवाल करने की जराअत दिलाती है वह तेरा तफ़ज़्जुल व एहसान है
عَلَى مَنْ أَقْبَلَ بِوَجْهِهِ إلَيْكَ،
जो तेरी तरफ़ रूजूअ होने वालों
وَوَفَدَ بِحُسْنِ ظَنِّـهِ إلَيْكَ،
और हुस्ने ज़न के साथ आने वालों के हमेशा शरीके हाल रहा है
إذْ جَمِيعُ إحْسَانِكَ تَفَضُّلٌ،
क्योंके तेरे तमाम एहसानात सिर्फ़ तेरे तफ़ज़्ज़ल की बिना पर हैं
وَإذْ كُلُّ نِعَمِكَ ابْتِدَاءٌ.
और तेरी हर नेमत बग़ैर किसी साबेक़ा इस्तेहक़ाक़ के है।
فَهَا أَنَا ذَا يَا إلهِيْ وَاقِفٌ بِبَابِ عِزِّكَ
अच्छा फिर ऐ मेरे माबूद! मैं तेरे दरवाज़ा-ए-इज़्ज़ो जलाल पर
وُقُوفَ المُسْتَسْلِمِ الذَّلِيْل، وَسَائِلُكَ عَلَى الْحَيَاءِ مِنّي
एक अब्दे मुतीअ व ज़लील की तरह खड़ा हूँ और शर्मिन्दगी के साथ
سُؤَالَ الْبَائِسِ الْمُعِيْلِ. مُقـرٌّ لَكَ بأَنّي
एक फ़क़ीर व मोहताज की हैसियत से सवाल करता हूँ इस अम्र का इक़रार करते हुए
لَمْ أَسْتَسْلِمْ وَقْتَ إحْسَانِـكَ إلاَّ بِالاِقْلاَعِ عَنْ عِصْيَانِكَ،
के तेरे एहसानात के वक़्त तर्के मासियत के अलावा और कोई इताअत (अज़ क़बीले हम्द व शुक्र) न कर सका,
وَلَمْ أَخْلُ فِي الْحَالاتِ كُلِّهَا مِنِ امْتِنَانِكَ.
और मैं किसी हालत में तेरे इनआम व एहसान से ख़ाली नहीं रहा।
فَهَلْ يَنْفَعُنِي يَا إلهِي إقْرَارِي عِنْدَكَ بِسُوءِ مَا اكْتَسَبْتُ؟
तो क्या ऐ मेरे माबूद! यह बदआमालियों का इक़रार तेरी बारगाह में मेरे लिये सूदमन्द हो सकता है
وَهَلْ يُنْجِيْنِي مِنْكَ اعْتِرَافِي لَكَ بِقَبِيْحِ مَا ارْتَكَبْتُ؟
और वह बुराइयां जो मुझसे सरज़द हुई हैं उनका एतराफ़ तेरे अज़ाब से निजात का बाएस क़रार पा सकता है।
أَمْ أَوْجَبْتَ لِي فِي مَقَامِي هَذَا سُخْطَكَ؟
या यह के तूने इस मक़ाम पर मुझ पर ग़ज़ब करने का फ़ैसला कर लिया है
أَمْ لَزِمَنِي فِي وَقْتِ دُعَائِي مَقْتُكَ؟
और दुआ के वक़्त अपनी नाराज़गी को मेरे लिये बरक़रार रखा है।
سُبْحَانَكَ! لاَ أَيْأَسُ مِنْكَ وَقَدْ فَتَحْتَ لِيَ بَابَ التَّوْبَةِ إلَيْكَ،
तू पाक व मुनज़्ज़ह है। मैं तेरी रहमत से मायूस नहीं हूँ इसलिये के तूने अपनी बारगाह की तरफ़ मेरे लिये तौबा का दरवाज़ा खोल दिया है,
بَلْ أَقُولُ مَقَالَ الْعَبْدِ الذَّلِيلِ الظَّالِمِ لِنَفْسِهِ
बल्कि मैं उस बन्दए ज़लील की सी बात कह रहा हूँ जिसने अपने नफ़्स पर ज़ुल्म किया
الْمُسْتَخِفِّ بِحُرْمَةِ رَبِّهِ
और अपने परवरदिगार की हुरमत का लेहाज़ न रखा।
الَّذِي عَظُمَتْ ذُنُوبُهُ فَجَلَّتْ وَأَدْبَرَتْ أَيّامُهُ فَوَلَّتْ
जिसके गुनाह अज़ीम रोज़ अफ़ज़ोर हैं।
حَتَّى إذَا رَأى مُدَّةَ الْعَمَلِ قَدِ انْقَضَتْ
जिसकी ज़िन्दगी के दिन गुज़र गए और गुज़रे जा रहे हैं।
وَغَايَةَ الْعُمُرِ قَدِ انْتَهَتْ ،
यहाँ तक के जब उसने देखा के मुद्दते अमल तमाम हो गई
وَأَيْقَنَ أَنَّهُ لا مَحيصَ لَهُ مِنْكَ ،وَلاَ مَهْرَبَ لَهُ عَنْكَ
और उम्र अपनी आख़ेरी हद को पहुँच गई और यह यक़ीन हो गया के अब तेरे हाँ हाज़िर हूए बग़ैर कोई चारा
تَلَقَّاكَ بِالإنَابَةِ ،وَأَخْلَصَ لَكَ التَّوْبَةَ
और तुझ से निकल भागने की सूरत नहीं है। तो वह हमहतन तेरी तरफ़ रूजु हुआ और सिदक़े नीयत से तेरी बारगाह में तौबा की।
، فَقَامَ إلَيْكَ بِقَلْبِ طَاهِر نَقِيٍّ
अब वह बिलकुल पाक व साफ़ दिल के साथ तेरे हुज़ूर खड़ा हुआ।
ثُمَّ دَعَاكَ بِصَوْت حَائِل خَفِيٍّ ،
फिर कपकपाती आवाज़ से और दबे लहजे में तुझे पुकारा
قَدْ تَطَأطَأَ لَكَ فَانْحَنى، وَنَكَّسَ رَأسَهُ فَانْثَنَى ،
इस हालत में तुझे पुकारा इस हालत में के ख़ुशू व तज़ल्लुल के साथ तेरे सामने झुक गया
قَدْ أَرْعَشَتْ خَشْيَتُهُ رِجْلَيْهِ، وَغَرَّقَتْ دُمُوعُهُ خَدَّيْهِ ،
और सर को न्योढ़ा कर तेरे आगे ख़मीदा हो गया। ख़ौफ़ से इसके दोनों पावों थर्रा रहे हैं और सीले अश्क उसके रूख़सारों पर रवाँ है
يَدْعُوكَ بِيَا أَرْحَمَ الرَّاحِمِينَ وَيَا أَرْحَمَ مَنِ انْتَابَهُ الْمُسْتَرْحِمُونَ،
और तुझे इस तरह पुकार रहा है:- ऐ सब रहम करने वालों से ज़्यादा रहम करने वाले, ऐ उन सबसे बढ़कर रहम करने वाले जिनसे तलबगाराने रहम व करम बार बार रहम की इल्तिजाएं करते हैं,
وَيَا أَعْطَفَ مَنْ أَطَافَ بِهِ الْمُسْتَغْفِرُونَ ،
ऐ उन सबसे ज़्यादा मेहरबानी करने वाले जिनके गिर्द माफ़ी चाहने वाले घेरा डाले रहते हैं।
وَيَا مَنْ عَفْوُهُ أكْثَرُ مِنْ نِقْمَتِهِ،
ऐ वह जिसका अफ़ो व वरगुज़ाँ के इन्तेक़ाम से फ़ज़ोंतर है।
وَيَا مَنْ رِضَاهُ أَوْفَرُ مِنْ سَخَطِهِ،
ऐ वह जिसकी ख़ुशनूदी उसकी नाराज़गी से ज़्यादा है।
وَيَا مَنْ تَحَمَّدَ إلَى خَلْقِهِ بِحُسْنِ التَّجاوُزِ ،
ऐ वह जो बेहतरीन अफ़ो व दरगुज़र के बाएस मख़लूक़ात के नज़दीक हम्द व सताइश का मुस्तहक़ है।
وَيَا مَنْ عَوَّدَ عِبادَهُ قَبُولَ الإنَابَةِ ،
ऐ वह जिसने अपने बन्दों को क़ुबूले तौबा का ख़ौगीर किया है,
وَيَا مَنِ اسْتَصْلَحَ فَاسِدَهُمْ بِالتَّوْبَةِ
और तौबा के ज़रिये उनके बिगड़े हुए कामों की दुरूस्ती चाही है।
وَيَا مَنْ رَضِيَ مِنْ فِعْلِهِمْ بِالْيَسيرِ،
ऐ वह जो उनके ज़रा से अमल पर ख़ुश हो जाता है
وَيَا مَنْ كَافى قَلِيْلَهُمْ بِالْكَثِيرِ،
और थोड़े से काम का बदला ज़्यादा देता है
وَيَا مَنْ ضَمِنَ لَهُمْ إجَابَةَ الدُّعاءِ،
ऐ वह जिसने उनकी दुआओं को क़ुबूल करने का ज़िम्मा लिया है।
وَيَا مَنْ وَعَدَهُمْ عَلَى نَفْسِهِ بِتَفَضُّلِهِ حُسْنَ الْجَزاءِ،
ऐ वह जिसने अज़रूए तफ़ज़्ज़ुल व एहसान बेहतरीन जज़ा का वादा किया है
مَا أَنَا بِأَعْصَى مَنْ عَصَاكَ فَغَفَرْتَ لَهُ،
जिन लोगों ने तेरी मासियत की और तूने उन्हें बख़्श दिया
وَمَا أَنَا بِأَلْوَمِ مَنِ اعْتَذَرَ إلَيْكَ فَقَبِلْتَ مِنْهُ،
मैं उनसे ज़्यादा गुनहगार नहीं हूं जिन्होंने तुझसे माज़ेरत की और तूने उनकी माज़ेरत को क़ुबूल कर लिया
وَمَا أَنَا بِأَظْلَمِ مَنْ تَابَ إلَيْكَ فَعُدْتَ عَلَيْهِ ،
उनसे ज़्यादा क़ाबिले सरज़न्श नहीं हूँ और जिन्होंने तेरी बारगाह में तौबा की और तूने (तौबा को क़ुबूल फ़रमाकर) उन पर एहसान किया उनसे ज़्यादा ज़ालिम नहीं हूँ।
أَتُوبُ إلَيْكَ فِي مَقَامِي هَذَا تَوْبَةَ نَادِم عَلَى مَا فَرَطَ مِنْهُ
लेहाज़ा मैं अपने इस मौक़ूफ़ को देखते हुए तेरी बारगाह में तौबा करता हूँ
مُشْفِق مِمَّا اجْتَمَعَ عَلَيْهِ خَالِصِ الْحَيَاءِ مِمَّا وَقَعَ فِيْهِ ،
उस शख़्स की सी तौबा जो अपने पिछले गुनाहों पर नादिम और ख़ताओं के हुजूम से ख़ौफ़ज़दा और जिन बुराइयों का मुरतकिब होता रहा है उन पर वाक़ेई शर्मसार हूँ
عَالِم بِأَنَّ الْعَفْوَ عَنِ الذَّنْبِ الْعَظِيمِ لاَ يَتَعـاظَمُكَ،
और जानता हूं के बड़े से बड़े गुनाह को माफ़ कर देना तेरे नज़दीक कोई बड़ी बात नहीं है
وَأَنَّ التَّجَـاوُزَ عَنِ الإثْمِ الْجَلِيْلِ لا يَسْتَصْعِبُكَ ،
और बड़ी से बड़ी ख़ता से दरगुज़र करना तेरे लिये कोई मुश्किल नहीं है
وَأَنَّ احْتِمَالَ الْجنَايَاتِ الْفَـاحِشَةِ لا يَتَكَأَّدُكَ،
और सख़्त से सख़्त जुर्म से चश्मपोशी करना तुझे ज़रा गराँ नहीं है।
وَأَنَّ أَحَبَّ عِبَادِكَ إلَيْكَ مَنْ تَرَكَ الاسْتِكْبَارَ عَلَيْكَ،
यक़ीनन तमाम बन्दों में से वह बन्दा तुझे ज़्यादा महबूब है जो तेरे मुक़ाबले में सरकशी न करे गुनाहों पर मसर न हो
وَجَانَبَ الإِصْرَارَ، وَلَزِمَ الاسْتِغْفَارَ.
और तौबा व अस्तग़फ़ार की पाबन्दी करे
وَأَنَا أَبْرَأُ إلَيْكَ مِنْ أَنْ أَسْتَكْبِرَ،
और मैं तेरे हुज़ूर ग़ुरूर व सरकशी से दस्तबरदार होता हूँ
وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ أَنْ أصِـرَّ.
और गुनाहों पर इसरार से तेरे दामन में पनाह मांगता हूँ
وَأَسْتَغْفِرُكَ لِمَا قَصَّرْتُ فِيهِ ،
और जहाँ-जहाँ कोताही की है उसके लिये अफ़ो व बख़्शिश का तलबगार हूँ।
وَأَسْتَعِينُ بِكَ عَلَى مَا عَجَزْتُ عَنْهُ.
और जिन कामों के अन्जाम देने से आजिज़ हूँ उनमें तुझ से मदद का ख़्वास्तगार हूँ।
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ
ऐ अल्लाह! तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर
وَهَبْ لِي مَا يَجبُ عَلَيَّ لَكَ ،
और तेरे जो जो हुक़ूक़ मेरे ज़िम्मे आएद होते हैं उन्हें बख़्श दे
وَعَافِنِي مِمَّا أَسْتَوْجِبُهُ مِنْكَ،
और जिस पादाश का मैं सज़ावार हूँ उससे मोआफ़ी दे
وَأجِرْنِي مِمَّا يَخَافُهُ أَهْلُ الإساءَةِ
और मुझे उस अज़ाब से पनाह दे जिससे गुनहगार हरासाँ हैं।
فَإنَّكَ مَلِيءٌ بِالْعَفْوِ، مَرْجُوٌّ لِلْمَغْفِرَةِ، مَعْرُوفٌ بِالتَّجَاوُزِ ،
इसलिये के तू माफ़ कर देने पर क़ादिर है और तू उस सिफ़ते अफ़ो व दरगुज़र में मारूफ़ है।
لَيْسَ لِحَاجَتِي مَطْلَبٌ سِوَاكَ ،
और तेरे सिवा हाजत के पेश करने की कोई जगह नहीं है
وَلا لِذَنْبِي غَافِرٌ غَيْرُكَ، َحاشَاكَ
न तेरे अलावा कोई मेरे गुनाहों का बख़्शने वाला है। हाशा व कला कोई और बख़्शने वाला नहीं है।
وَلاَ أَخَافُ عَلَى نَفْسِي إلاّ إيَّاكَ
और मुझे अपने बारे में डर है तो बस तेरा। इसलिये के तू ही इसका सज़ावार है के तुझ से डरा जाए।
إنَّكَ أَهْلُ التَّقْوَى وَأَهْلُ الْمَغْفِرَةِ .
और तू ही इसका अहल है के बख़्शिश व आमरज़िश से काम ले,
صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِ مُحَمَّد،
तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा
وَاقْض حَاجَتِي وَأَنْجِحْ طَلِبَتِي،
और मेरी हाजत बर ला और मेरी मुराद पूरी कर।
وَاغْفِرْ ذَنْبِي، وَآمِنْ خَوْفَ نَفْسِيْ
मेरे गुनाह बख़्श दे और मेरे दिल को ख़ौफ़ से मुतमइन कर दे।
إنَّكَ عَلَى كُلِّ شَيْء قَدِيرٌ
इसलिये के तू हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है
وَذلِكَ عَلَيْكَ يَسِيرٌ آمِينَ رَبَّ الْعَالَمِينَ .
और यह काम तेरे लिये सहल व आसान है। मेरी दुआ क़ुबूल फ़रमा ऐ तमाम जहान के परवरदिगार।

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