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His Supplication in Yearning to Ask Forgiveness from God

دُعَاؤُهُ فِي الِاشْتِيَاقِ الى طَلَبِ المَغفِرَةِ مِن الله

أللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ
ऐ अल्लाह! रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर
وَصَيِّرْنَـا إلَى مَحْبُوبِكَ مِنَ التَّوْبَةِ
और हमारी ताज्जो उस तौबा की तरफ़ मबज़ूल कर दे जो तुझे पसन्द है
وَأَزِلْنَا عَنْ مَكْرُوهِكَ مِنَ الإصْرَارِ.
और गुनाह के इसरार से हमें दूर रख जो तुझे नापसन्द है।
أللَّهُمَّ وَمَتَى وَقَفْنَا بَيْنَ نَقْصَيْنِ فِي دِين
बारे इलाहा! जब हमारा मौक़ूफ़ कुछ ऐसा हो के (हमारी किसी कोताही के बाएस) दीन का ज़याल होता हो
أَوْ دُنْيَا فَأَوْقِعِ النَّقْصَ بِأَسْرَعِهِمَا فَنَاءً ،
या दुनिया का तू नुक़सान (दुनिया में) क़रार दे के जो जल्द फ़ना पज़ीद है
وَاجْعَلِ التّوْبَةَ فِي أَطْوَلِهِمَا بَقَاءً.
आर अफ़ो व दरगुज़र को (दीन के मामले में) क़रार दे जो बाक़ी व बरक़रार रहने वाला है
وَإذَا هَمَمْنَا بِهَمَّيْنِ يُرْضِيكَ أَحَدُهُمَا عَنَّا
और जब हम ऐसे दो कामों का इरादा करें के इनमें से एक तेरी ख़ुशनूदी का
وَيُسْخِطُكَ الآخَرُ عَلَيْنَا ،
और दूसरा तेरी नाराज़ी का बाएस हो
فَمِلْ بِنَا إلَى مَا يُرْضِيْكَ عَنَّا ،
तो हमें उस काम की तरफ़ माएल करना जो तुझे ख़ुश करने वाला हो
وَأَوْهِنْ قُوَّتَنَا عَمَّا يُسْخِطُكَ عَلَيْنَا ،
और उस काम से हमें बे दस्त-व-पा कर देना जो तुझे नाराज़ करने वाला हो
وَلاَ تُخَلِّ فِي ذلِكَ بَيْنَ نُفُوسِنَا وَاخْتِيَارِهَا
और इस मरहले पर हमें इख़्तेयार देकर आज़ाद न छोड़ दे,
فَإنَّهَا مُخْتَارَةٌ لِلْبَاطِلِ إلاَّ مَا وَفَّقْتَ أَمَّارَةٌ بالسُّوءِ إلاّ مَا رَحِمْتَ
क्योंकर नफ़्स तो बातिल ही को एख़्तेयार करने वाला है, मगर जहाँ तेरी तौफ़ीक़ शामिले हाल हो और बुराई का हुक्म देने वाला है मगर जहाँ तेरा रहम कारफ़रमा हो।
اللَّهمَّ وَإنَّكَ مِنَ الضَّعْفِ خَلَقْتَنَا،
बारे इलाहा! तूने हमें कमज़ोर
وَعَلَى الْوَهْنِ بَنَيْتَنَا ، وَمِنْ ماُءٌُِِ مَهِين ابْتَدَأتَنَا ،
और सुस्त बुनियाद पैदा किया है और पानी के एक हक़ीर क़तरे (नुत्फे) से ख़ल्क़ फ़रमाया है,
فَلاَ حَوْلَ لَنَا إلاّ بِقُوَّتِكَ وَلا قُوَّةَ لَنَا إلاّ بِعَونِِكَ ،
अगर हमें कुछ वक़्त व तसर्रूफ़ हासिल है तो तेरी क़ूवत की बदौलत, और इख़्तेयार है तो तो तेरी मदद के सहारे से,
فَأيِّدْنَا بِتَوْفِيقِكَ وَسَدِّدْنَا بِتَسْدِيدِكَ
लेहाज़ा अपनी तौफ़ीक़ से हमारी दस्तगीरी फ़रमा और अपनी रहनुमाई से इस्तेहकाम व क़ूवत बख़्श
وَأعْمِ أَبْصَارَ قُلُوبِنَا عَمَّا خَالَفَ مَحَبَّتَكَ
और हमारे वीदाए दिल को उन बातों से जो तेरी मोहब्बत के खि़लाफ़ हैं नाबीना कर दे
وَلا تَجْعَلْ لِشَيْء مِنْ جَوَارِحِنَا نُفُوذاً فِي مَعْصِيَتِكَ.
और हमारे आज़ा के किसी हिस्से में मासियत के सरायत करने की गुन्जाइश पैदा न कर।
اللَّهُمَّ فَصَلِّ عَلَى مُحَمَد وَآلِهِ
बारे इलाहा! रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर
وَاجْعَلْ هَمَسَاتِ قُلُوبِنَا وَحَرَكَاتِ أَعْضَائِنَا ،
और हमारे दिल के ख़यालों, आज़ा की जुम्बिशों,
وَلَمَحَاتِ أَعْيُنِنَا ، وَلَهَجَاتِ ألسِنَتِنَا فِيْ مُوجِبَاتِ ثَوَابِكَ،
आँख के इशारों और ज़बान के कलमों को, उन चीज़ों में सर्फ़ करने की तौफ़ीक़ दे जो तेरे सवाब का बाएस होँ
حَتَّى لاَ تَفُوتَنَا حَسَنَةٌ نَسْتَحِقُّ بِهَا جَزَآءَكَ ،
यहाँ तक के हमसे कोई ऐसी नेकी छूटने न पाये जिससे हम तेरे अज्र व सवाब के मुस्तहक़ क़रार पाएँ
وَلا تَبْقَى لَنَا سَيِّئـةٌ نَسْتَوْجِبُ بِهَا عِقَابَكَ.
और न हम में कोई बुराई रह जाए जिससे तेरे अज़ाब के सज़ावार ठहरें

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