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His Supplication for himself and thePeople under his Guardianship

دُعَاؤُهُ لِنَفسِهِ وَ اهل وِِلايتهِ

يامَنْ لاتَنْقَضِي عَجَائِبُ عَظَمَتِهِ،
ऐ वह जिसकी बुज़ुर्गी व अज़मत के अजाएब ख़त्म होने वाले नहीं
صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ،
तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा
وَاحْجُبْنَا عَنِ الالْحَادِ فِي عَظَمَتِكَ.
और हमें अपनी अज़मत के परदों में छुपाकर कज अन्देशियों से बचा ले।
وَيَا مَنْ لاَ تَنْتَهِي مُدَّةُ مُلْكِهِ،
ऐ वह जिसकी शाही व फ़रमाँरवाई की मुद्दत ख़त्म होने वाली नहीं
صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ،
तू रहमत नाज़िल कर मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर
وَأَعْتِقْ رِقَابَنَا مِنْ نَقِمَتِك.
और हमारी गर्दनों को अपने ग़ज़ब व अज़ाब (के बन्धनों) से आज़ाद रख
وَيَا مَنْ لا تَفْنَى خَزَائِنُ رَحْمَتِهِ،
ऐ वह जिसकी रहमत के ख़ज़ाने ख़त्म होने वाले नहीं
صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ،
रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर
وَاجْعَلْ لَنا نَصِيباً فِي رَحْمَتِكَ.
और अपनी रहमत में हमारा भी हिस्सा क़रार दे
وَيَا مَنْ تَنْقَطِعُ دُونَ رُؤْيَتِهِ الابْصَارُ،
ऐ वह जिसके मुशाहिदे से आँखें क़ासिर हैं,
صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ،
रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर
وَأَدْنِنَا إلَى قُرْبِكَ.
और अपनी बारगाह से हमको क़रीब कर ले
وَيَا مَنْ تَصْغُرُ عِنْدَ خَطَرِهِ الاخْطَارُ،
ऐ वह जिसकी अज़मत के सामने तमाम अज़मतें पस्त व हक़ीर हैं,
صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ،
रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर
وَكَرِّمْنَا عَلَيْكَ.
और हमें अपने हाँ इज़्ज़त अता कर
وَيَا مَنْ تَظْهَرُ عِنْدَهُ بَوَاطِنُ الاخْبَارِ،
ऐ वह जिसके सामने राज़हाए सरबस्ता ज़ाहिर हैं
صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ،
रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर
وَلاَ تَفْضَحْنَا لَدَيْكَ.
और हमें अपने सामने रूसवा न कर।
اللَّهُمَّ أَغْنِنَا عَنْ هِبَةِ الْوَهّابِيْنَ بِهِبَتِكَ،
बारे इलाहा! हमें अपनी बख़्शिश व अता की बदौलत बख़्शिश करने वालों की बख़्शिश से बेनियाज़ कर दे
وَاكْفِنَا وَحْشَةَ الْقَاطِعِين بِصِلَتِكَ ،
और अपनी पोस्तगी के ज़रिये क़तअ ताअल्लुक़ करने वालों की बेताअल्लुक़ी व दूरी की तलाफ़ी कर दे
حَتّى لا نَرْغَبَ إلَى أحَد مَعَ بَذْلِكَ،
ताके तेरी बख़्शिष व अता के होते हुए दूसरे से सवाल न करें
وَلاَ نَسْتَوْحِشَ مِنْ أحَد مَعَ فَضْلِكَ
और तेरे फ़ज़्ल व एहसान के होते हुए किसी से हरासाँ न हों।
اللهُمَّ فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ
ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा
وَكِدْ لَنَا وَلا تَكِدْ عَلَيْنَا،
और हमारे नफ़े की तदबीर कर और हमारे नुक़सान की तदबीर न कर
وَامْكُرْ لَنَا وَلاَ تَمْكُرْ بنَا،
और हमसे मक्र करने वाले दुश्मनों को अपने मक्र का निशाना बना
وَأدِلْ لَنَا وَلاَ تُدِلْ مِنّا.
और हमें उसकी ज़द पर न रख। और हमें दुश्मनों पर ग़लबा दे, दुश्मनों को हम पर ग़लबा न दे
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ،
बारे इलाहा! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा
وَقِنَا مِنْكَ، وَاحْفَظْنَا بِكَ، وَاهْدِنَا إلَيْكَ،
और हमें अपने नाराज़गी से महफ़ूज़ रख और अपने फ़ज़्ल व करम से हमारी निगेहदाश्त फ़रमा और अपनी जानिब हमें हिदायत कर
وَلاَ تُبَاعِدْنَا عَنْكَ إنّ مَنْ تَقِهِ يَسْلَمْ،
और अपनी रहमत से दूर न कर के जिसे तू अपनी नाराज़गी से बचाएगा वही बचेगा।
وَمَنْ تَهْدِهِ يَعْلَمْ، وَمَنْ تُقَرِّبُهُ إلَيْكَ يَغْنَمْ.
और जिसे तू हिदायत करेगा वही (हक़ाएक़ पर) मुत्तेलअ होगा और जिसे तू (अपनी रहमत से) क़रीब करेगा वही फ़ायदे में रहेगा
الّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ
ऐ माबूद! तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा
وَاكْفِنَا حَدَّ نَوائِبِ الزَّمَانِ،
और हमें ज़माने के हवादिस की सख़्ती से अपनी पनाह में रख
وَشَرَّ مَصَائِدِ الشّيطانِ وَمَرَارَةَ صَوْلَةِ السُّلْطَانِ.
और शैतान के हथकण्डों की फ़ित्ना अंगेज़ी और सुलतान के क़हर व ग़लबे की तल्ख़ कलामी से अपनी पनाह में रख
اللّهُمَّ إنَّما يَكْتَفِي الْمُكْتَفُونَ بِفَضْـل
बारे इलाहा! बेनियाज़ होने वाले तेरे ही कमाले क़ूवत व इक़्तेदार के सहारे बे नियाज़ होते हैं
قُوَّتِكَ فَصَلِّ عَلَى محَمَّد وَآلِهِ ،وَاكْفِنَا
रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमें बेनियाज़ कर दे
وَإنَّمَا يُعْطِي الْمُعْطُونَ مِنْ فَضْلِ جِدَتِكَ
और अता करने वाले तेरी ही अता व बख़्शिश के हिस्सए दाफ़र में से अता करते हैं।
فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ و اعطنا
रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमें भी (अपने ख़ज़ानए रहमत से) अता फ़रमा
وَإنمَا يَهْتَدِي الْمُهْتَدُونَ بِنُورِ وَجْهِكَ
और हिदायत पाने वाले तेरी ही ज़ात की दर की दरख़्शिन्दगियों से हिदायत पाते हैं।
فَصَلِّ عَلَى محمّد وَآلِهِ وَاهْدِنَا .
रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और हमें हिदायत फ़रमा।
اللّهُمَّ إنّكَ مَنْ وَالَيْتَ لَمْ يَضْرُرْهُ خِذْلانُ الْخَاذِلِينَ،
बारे इलाहा! जिसकी तूने मदद की उसे मदद न करने वालों का मदद से महरूम रखना कुछ नुक़सान नहीं पहुंचा सकता
وَمَنْ أعْطَيْتَ لَمْ يَنْقُصْهُ مَنْـعُ الْمَانِعِينَ،
और जिसे तू अता करे उसके हाँ रोकने वालों के रोकने से कुछ कमी नहीं हो जाती।
وَمَنْ هَدَيْتَ لَمْ يُغْوِهِ إضْلاَلُ المُضِلِّيْنَ.
और जिसकी तू ख़ुसूसी हिदायत करे उसे गुमराह करने वालों का गुमराह करना बे राह नहीं कर सकता
فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ، وَامْنَعْنَا بِعِزَّكَ، مِنْ عِبَادِكَ
रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर और अपने ग़लबे व क़ूवत के ज़रिये बन्दों (के शर) से हमें बचाए रख
وَأغْنِنَا عَنْ غَيْرِكَ بِإرْفَادِكَ
और अपनी अता व बख़्शिश के ज़रिये दूसरों से बेनियाज़ कर दे
وَاسْلُكْ بِنَا سَبِيلَ الْحَقِّ بِـإرْشَادِكَ.
और अपनी रहनुमाई से हमें राहे हक़ पर चला
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِـهِ وَاجْعَلْ سَلاَمَةَ قُلُوبِنَا
ऐ माबूद! तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमारे दिलों की सलामती
فِي ذِكْرِ عَظَمَتِكَ وَفَرَاغَ أبْدَانِنَا فِي شُكْرِ نِعْمَتِكَ
अपनी अज़मत की याद में क़रार दे और हमारी जिस्मानी फ़राग़त (के लम्हों) को अपनी नेमत के शुक्रिया में सर्फ़ कर दे
وَانْطِلاَقَ أَلْسِنَتِنَا فِي وَصْفِ مِنَّتِكَ.
और हमारी ज़बानों की गोयाई को अपने एहसान की तौसीफ़ के लिये वक़्फ़ कर दे
أللَهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ
ऐ अल्लाह! तू रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर
وَاجْعَلْنَا مِنْ دُعَاتِكَ الدّاعِينَ إلَيْكَ
और हमें उन लोगों में से क़रार दे जो तेरी तरफ़ दावत देने वाले
وَهُدَاتِكَ الدَّالّينَ عَلَيْكَ
और तेरी तरफ़ का रास्ता बताने वाले हैं
وَمِنْ خَاصَّتِكَ الْخَاصِّينَ لَدَيْكَ
और अपने ख़ासुल ख़ास मुक़र्रेबीन में से क़रार दे
يَا أرْحَمَ ألرَّاحِمِينَ .
ऐ सब रहम करने वालों से ज़्यादा रहम करने वाले।

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