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<-Supplication on Noble Moral Traits (Makarimul Akhlaq)

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This Du'a has been taught by Imam Sajjad (as) and is a clear indication of the loftiness of moral virtues expected of a believer. Islam believes in the elevation of the human being, that a human is a great and dignified creation, far above the animal world. One of the signs of this dignity is the possession of noble and magnanimous qualities.

دُعَاؤُهُ فِي مَكَارِمِ الْأَخْلَاقِ

أَللَّهمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ
बारे इलाहा! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा
وَبَلِّغْ بِإيْمَانِي أكْمَلَ الإِيْمَانِ،
और मेरे ईमान को कामिल तरीन ईमान की हद तक पहुंचा दे
وَاجْعَلْ يَقِينِي أَفْضَلَ الْيَقِينِ،
और मेरे यक़ीन को बेहतरीन यक़ीन क़रार दे
و انتَهِ بِنِيَّتِي إلَى أَحْسَنِ النِّيَّـاتِ،
और मेरी नीयत को पसन्दीदातरीन नीयत और
وَبِعَمَلِي إلى أَحْسَنِ الأعْمَالِ.
मेरे आमाल को बेहतरीन आमाल के पाया तक बलन्द कर दे
أللَّهُمَّ وَفِّرْ بِلُطْفِكَ نِيَّتِي،
ख़ुदावन्द! अपने लुत्फ़ से मेरी नीयत को ख़ालिस व बेरिया
وَصَحِّحْ بِمَـا عِنْدَكَ يَقِينِي،
और अपनी रहमत से मेरे यक़ीन को इस्तवार
وَاسْتَصْلِحْ بِقُدْرَتِكَ مَا فَسَدَ مِنِّي.
और अपनी क़ुदरत से मेरी ख़राबियों की इस्लाह कर दे।
أللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ
बारे इलाहा। मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा
وَاكْفِنِي مَا يَشْغَلُنِي الاهْتِمَامُ بِهِ،
और मुझे उन मसरूफ़ीन से जो इबादत में मानेअ हैं बेनियाज़ कर दे
وَاسْتَعْمِلْنِي بِمَا تَسْأَلُنِي غَداً عَنْهُ
और उन्हीं चीज़़ों पर अमल पैरा होने की तौफ़ीक़ दे जिनके बारे में मुझसे कल के दिन सवाल करेगा
وَاسْتَفْرِغْ أَيَّامِي فِيمَا خَلَقْتَنِي لَهُ،
और मेरे अय्यामे ज़िन्दगी को ग़रज़े खिलक़त की अन्जामदेही के लिये मख़सूस कर दे
وَأَغْنِنِي وَأَوْسِعْ عَلَىَّ فِي رِزْقِكَ،
और मुझे (दूसरों से) बेनियाज़ कर दे, और मेरे रिज़्क़ में कषाइष व वुसअत फ़रमा
وَلاَ تَفْتِنِّي بِالبَطَرِ، وَأَعِزَّنِي، وَلا تَبْتَلِيَنِّي بِالْكِبْرِ،
एहतियाज व दस्तंगरी में मुब्तिला न कर
وَعَبِّدْنِي لَكَ وَلاَ تُفْسِدْ عِبَادَتِي بِالْعُجْبِ،
इज़्ज़त व तौक़ीर दे, किब्र व ग़ुरूर से दो चार न होने दे
وَأَجْرِ لِلنَّاسِ عَلَى يَدَيَّ الْخَيْرَ، وَلا تَمْحَقْهُ بِالْمَنِّ،
मेरे नफ़्स को बन्दगी व इबादत के लिये राम कर और ख़ुदपसन्दी से मेरी इबादत को फ़ासिद न होने दे और मेरे हाथों से लोगों को फ़ैज़ पहुंचा दे और उसे एहसान जताने से राएगाना न होने दे।
وَهَبْ لِي مَعَالِيَ الأَخْلاَقِ، وَاعْصِمْنِي مِنَ الْفَخْرِ.
मुझे बलन्दपाया एख़लाक़ मरहमत फ़रमा और ग़ुरूर और तफ़ाख़ुर से महफ़ूज़ रख।
اللَّهُمَّ صَـلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ،
बारे इलाहा! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा
وَلا تَـرْفَعْنِي فِيْ النَّاسِ دَرَجَـةً
और लोगों में मेरा दरजा जितना बलन्द करे
إلاّ حَطَطْتَنِي عِنْدَ نَفْسِي مِثْلَهَا،
उतना ही मुझे ख़ुद अपनी नज़रों में पस्त कर दे
وَلا تُحْدِثْ لِي عِزّاً ظَاهِرَاً
और जितनी ज़ाहेरी इज़्ज़त मुझे दे उतना ही
إلاّ أَحْدَثْتَ لِي ذِلَّةً بَاطِنَةً عِنْدَ نَفْسِي بِقَدَرِهَا.
मेरे नफ़्स में बातिनी बेवक़अती का एहसास पैदा कर दे।
أللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِ مُحَمَّد،
बारे इलाहा! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा
وَمَتِّعْنِي بِهُدىً صَالِح لا أَسْتَبْدِلُ بِهِ،
और मुझे ऐसी नेक हिदायत से बहरामन्द फ़रमा के जिसे दूसरी चीज़ से तबदील न करू
وَطَرِيقَةِ حَقٍّ لا أَزِيْغُ عَنْهَا،
और ऐसे सही रास्ते पर लगा जिससे कभी मुंह न मोड़ूं,
وَنِيَّةِ رُشْد لاَ أَشُكُّ فِيْهَا
और ऐसी पुख़्ता नीयत दे जिसमें ज़रा शुबहा न करूं
وَعَمِّرْنِي مَا كَانَ عُمْرِيْ بِذْلَةً فِي طَاعَتِكَ،
और जब तक मेरी ज़िन्दगी तेरी इताअत व फ़रमाबरदारी के काम आये मुझे ज़िन्दा रख
فَإذَا كَانَ عُمْرِي مَرْتَعَاً لِلشَّيْطَانِ
और जब वह शैतान की चरागाह बन जाए तो
فَـاقْبِضْنِي إلَيْـكَ قَبْـلَ أَنْ يَسْبِقَ مَقْتُـكَ إلَيَّ،
इससे पहले के तेरी नाराज़गी से साबक़ा पड़े
أَوْ يَسْتَحْكِمَ غَضَبُكَ عَلَيَّ.
या तेरा ग़ज़ब मुझ पर यक़ीनी हो जाए, मुझे अपनी तरफ़ उठा ले
أللَّهُمَّ لا تَدَعْ خَصْلَةً تُعَابُ مِنِّي إلاّ أَصْلَحْتَهَا،
ऐ माबूद! कोई ऐसी ख़सलत जो मेरे लिये मोईब समझी जाती हो उसकी इस्लाह किये बग़ैर न छोड़
وَلا عَآئِبَةً أُؤَنَّبُ بِهَا إلاّ حَسَّنْتَهَا،
और कोई ऐसी बुरी आदत जिस पर मेरी सरज़निश की जा सके उसे दुरूस्त किये बग़ैर न रहने दे
وَلاَ أُكْرُومَـةً فِيَّ نَاقِصَةً إلاّ أَتْمَمْتَهَا.
और जो पाकीज़ा ख़सलत अभी मुझमें नातमाम हो उसे तकमील तक पहुंचा दे।
أللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِ مُحَمَّد
ऐ अल्लाह! रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर
وَأَبْدِلْنِي مِنْ بِغْضَةِ أَهْلِ الشَّنَئانِ الْمَحَبَّةَ
और मेरी निसबत कीनातोज़ दुशमनो की दुशमनी को उलफ़त से
وَمِنْ حَسَدِ أَهْلِ الْبَغْيِ الْمَوَدَّةَ،
सरकषों के हसद को मोहब्बत से,
وَمِنْ ظِنَّةِ أَهْلِ الصَّلاَحِ الثِّقَةَ،
नेकियों से बेएतमादी को एतमाद से,
وَمِنْ عَدَاوَةِ الأَدْنَيْنَ الْوَلايَةَ،
क़रीबों की अदावत को दोस्ती से
وَمِنْ عُقُوقِ ذَوِي الأَرْحَامِ الْمَبَرَّةَ،
अज़ीज़ों की क़तअ ताल्लुक़ी को सिलए रहमी से,
ومِنْ خِـذْلانِ الأَقْرَبِينَ النُّصْـرَةَ،
क़राबतदारों की बेएतनाई को नुसरत व तआवुन से,
وَمِنْ حُبِّ الْمُدَارِينَ تَصْحيحَ الْمِقَةِ،
ख़ुशामदियों की ज़ाहेरी मोहब्बत को सच्ची मोहब्बत से
وَمِنْ رَدِّ الْمُلاَبِسِينَ َكَرَمَ الْعِشْرَةِ،
और साथियों के एहानत आमेज़ बरताव को हुस्ने मआशेरत से
وَمِنْ مَرَارَةِ خَوْفِ الظَّالِمِينَ حَلاَوَةَ الأَمَنَةِ.
और ज़ालिमों के ख़ौफ़ की तल्ख़ी को अमन की शीरीनी से बदल दे।
أللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ
ख़ुदावन्दा! रहमत नाज़िल फ़रमा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर
وَاجْعَلْ لِيْ يَداً عَلَى مَنْ ظَلَمَنِي
और जो मुझ पर ज़ुल्म करे उस पर मुझे ग़लबा दे,
وَلِسَـاناً عَلَى مَنْ خَـاصَمَنِي
जो मुझसे झगड़ा करे उसके मुक़ाबले में ज़बान (हुज्जत शिकन) दे
وَظَفَراً بِمَنْ عَانَدَنِي
जो मुझ से दुशमनी करे उस पर मुझे फ़तेह व कामरानी बख़्श
وَهَبْ لِي مَكْراً عَلَى مَنْ كَايَدَنِي
जो मुझसे मक्र करे उसके मक्र का तोड़ अता कर,
وَقُدْرَةً عَلَى مَنِ اضْطَهَدَنِي
जो मुझे दबाए उस पर क़ाबू दे।
وَتَكْذِيباً لِمَنْ قَصَبَنِي
जो मेरी बदगोई करे उसे झुटलाने की ताक़त दे
وَسَلاَمَةً مِمَّنْ تَوَعِّدَنِي
और जो डराए धमकाए, उससे मुझे महफ़ूज़ रख।
وَوَفِّقْنِي لِطَاعَةِ مَنْ سَدَّدَنِي
जो मेरी इस्लाह करे उसकी इताअत और
وَمُتَابَعَةِ مَنْ أَرْشَدَنِي
जो राहे रास्त दिखाए उसकी पैरवी की तौफ़ीक़ अता फ़रमा।
أللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ،
ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा
وَسَدِّدْنِي لاَِنْ أعَـارِضَ مَنْ غَشَّنِي بِالنُّصْـحِ،
और मुझे उस अम्र की तौफ़ीक़ दे के जो मुझसे ग़ष व फ़रेब करे मैं उसकी ख़ैरख़्वाही करूं,
وَأَجْـزِيَ مَنْ هَجَرَنِي بِالْبِرِّ وَأُثِيبَ مَنْ حَرَمَنِي بِالْبَذْلِ
जो मुझे छोड़ दे उससे हुस्ने सुलूक से पेश आऊं, जो मुझे महरूम करे उसे अता व बख़्शिश के साथ एवज़ दूँ
وَأُكَافِيَ مَنْ قَطَعَنِي بِالصِّلَةِ
और जो क़तए रहमी करे उसे सिलए रहमी के साथ बदला दूँ
وأُخَـالِفَ مَنِ اغْتَابَنِي إلَى حُسْنِ الذِّكْرِ،
और जो पसे पुश्त मेरी बुराई करे मैं उसके बरखि़लाफ़ उसका ज़िक्रे ख़ैर करूं
وَأَنْ أَشْكرَ الْحَسَنَةَ وَاُغْضِيَ عَنِ السَّيِّئَـةِ.
और हुस्ने सुलूक पर शुकरिया बजा लाऊं और बदी से चष्मपोशी करूं।
أللَّهُمَّ صَـلِّ عَلَى مُحَمَّـد وَآلِـهِ
बारे इलाहा! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा
وَحَلِّنِي بِحِلْيَـةِ الصَّالِحِينَ،
मुझे नेकोकारों के ज़ेवर
وَأَلْبِسْنِي زِينَةَ المُتَّقِينَ فِيْ بَسْطِ الْعَدْلِ
और परहेज़गारों की सज व धज से आरास्ता कर, और अद्ल के नश्र,
وَكَظْمِ الْغَيْظِ وَإطْفَاءِ النَّائِرَةِ وَضَمِّ أَهْلِ الْفُرْقَةِ
ग़ुस्से के ज़ब्त और फ़ितने के फ़रो करने, मुतफ़र्रिक़ व परागान्दा लोगों को मिलाने,
وَإصْلاَحِ ذَاتِ الْبَيْنِ وَإفْشَاءِ الْعَارِفَةِ،
आपस में सुलह व सफ़ाई कराने,
وَسَتْرِ الْعَائِبَةِ، وَلِينِ الْعَرِيكَةِ،
नेकी के ज़ाहिर करने, ऐब पर पर्दा डालने,
وَخَفْضِ الْجَنَـاحِ، وَحُسْنِ السِّيرَةِ،
नर्म जोई व फ़रवतनी और हुस्ने सीरत के इख़्तेयार करने,
وَسُكُونِ الرِّيـحِ، وَطِيْبِ الْمُخَالَقَـةِ،
रख रखाव रखने हुस्ने एख़लाक़ से पेश आने
وَالسَّبْقِ إلَى الْفَضِيلَةِ، وإيْثَارِ التَّفَضُّلِ و تَركِ التَّعييرِ،
फ़ज़ीलत की तरफ़ पेशक़दमी करने, तफ़ज़्ज़ल व एहसान को तरजीह देने, ख़ोरदागीरी से किनारा करने
وَالإفْضَالِ عَلَى غَيْرِ الْمُسْتَحِقِّ وَالـقَوْلِ بِالْحَقِّ وَإنْ عَـزَّ
और मुस्तहक़ के साथ हुस्ने सुलूक के तर्क करने और हक़ बात के कहने में अगरचे वह गराँ गुज़रे,
وَاسْتِقْلاَلِ الخَيْـرِ وَإنْ كَثُـرَ مِنْ قَـوْلِي وَفِعْلِي ،
और अपनी गुफ़्तार व किरदार की भलाई को कम समझने में अगरचे वह ज़्यादा हो
وَاسْتِكْثَارِ الشَّرِّ وَإنْ قَلَّ مِنْ قَوْلِي وَفِعْلِي،
और अपनी क़ौल और अमल की बुराई को ज़्यादा समझने में अगरचे वह कम हो।
وَأكْمِلْ ذَلِكَ لِي بِدَوَامِ الطَّاعَةِ وَلُزُومِ الْجَمَاعَةِ
और उन तमाम चीज़ों को दाएमी इताअत और मिलत से वाबस्तगी
وَرَفْضِ أَهْلِ الْبِدَعِ وَمُسْتَعْمِلِ الرَّأي الْمُخْتَرَعِ.
और अहले बिदअत और ईजाद करदा राइयों पर अमल करने वालों से अलाहेदगी के ज़रिये पायाए तकमील तक पहुंचा दे।
أللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ
बारे इलाहा! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा
وَاجْعَلْ أَوْسَعَ رِزْقِكَ عَلَيَّ إذَا كَبُرتُ ،
और जब मैं बूढ़ा हो तो अपनी वसीअ रोज़ी मेरे लिये क़रार दे
وَأَقْوَى قُوَّتِكَ فِيَّ إذَا نَصِبْتُ،
और जब आजिज़ व दरमान्दा हो जाऊं तो अपनी क़वी ताक़त से मुझे सहारा दे
وَلاَ تَبْتَلِيَنّي بِالكَسَلِ عَنْ عِبَادَتِكَ
और मुझे इस बात में मुब्तिला न कर के तेरी इबादत में सुस्ती व कोताही करूं
وَلا الْعَمَى عَنْ سَبِيلِكَ وَلاَ بِالتَّعَرُّضِ لِخِلاَفِ مَحَبَّتِكَ،
तेरी राह की तशख़ीस में भटक जाऊं, तेरी मोहब्बत के तक़ाज़ों की खिलाफ़वर्ज़ी करूं
وَلاَ مُجَامَعَةِ مَنْ تَفَرَّقَ عَنْكَ،
और जो तुझसे मुतफ़र्रिक़ व परागान्दा हों उनसे मेलजोल रखूं
وَلا مُفَارَقَةِ مَنِ اجْتَمَعَ إلَيْكَ.
और जो तेरी जानिब बढ़ने वाले हैं उनसे अलाहीदा रहूं।
أللَّهُمَّ اجْعَلْنِي أصُوْلُ بِكَ عِنْدَ الضَّرُورَةِ وَأَسْأَلُكَ عِنْدَ الْحَاجَةِ،
ख़ुदावन्द! मुझे ऐसा क़रार दे के ज़रूरत के वक़्त तेरे ज़रिये हमला करूं, हाजत के वक़्त तुझसे सवाल करूं
وَأَتَضَرَّعُ إلَيْكَ عِنْدَ الْمَسْكَنَةِ ،
और फ़क्ऱ व एहतियाज के मौक़े पर तेरे सामने गिड़गिड़ाऊं
وَلا تَفْتِنّي بِالاسْتِعَانَةِ بِغَيْرِكَ إذَا اضْطُرِرْتُ،
और इस तरह मुझे न आज़माना के इज़तेरार में तेरे ग़ैर से मदद मांगूं
وَلا بِالْخُضُوعِ لِسُؤالِ غَيْرِكَ إذَا افْتَقَـرْتُ ،
और फ़क्ऱ व नादारी के वक़्त तेरे ग़ैर के आगे आजिज़ाना दरख़्वास्त करूं
وَلاَ بِـالتَّضَـرُّعِ إلَى مَنْ دُونَـكَ إذَا رَهِبْتُ
और ख़ौफ़ के मौक़े पर तेरे सिवा किसी दूसरे के सामने गिड़गिड़ाऊं
فَأَسْتَحِقَّ بِذلِكَ خِذْلانَكَ
के तेरी तरफ़ से महरूमी,
وَمَنْعَكَ وَإعْرَاضَكَ يَا أَرْحَمَ الرَّاحِمِينَ.
नाकामी और बे एतनाई का मुस्तहक़ क़रार पाऊं, ऐ तमाम रहम करने वालों में सबसे ज़्यादा रहम करने वाले।
أللَّهُمَّ اجْعَلْ مَا يُلْقِي الشَّيْطَانُ فِي رَوْعِي مِنَ التَّمَنِّي وَالتَّظَنِّي وَالْحَسَـدِ
ख़ुदाया! जो हिरस, बदगुमानी और हसद के जज़्बात शैतान मेरे दिल में पैदा करे
ذِكْـراً لِعَظَمَتِكَ،
उन्हें अपनी अज़मत की याद
وَتَفَكُّراً فِي قُدْرَتِكَ،
अपनी क़ुदरत में तफ़क्कुर
وَتَدْبِيراً عَلَى عَدُوِّكَ،
और दुशमन के मुक़ाबले में तदबीर व चारासाज़ी के तसव्वुरात से बदल दे
وَمَا أَجْرَى عَلَى لِسَانِي مِنْ لَفْظَةِ فُحْش أَوْ هُجْر
और जो मेरी ज़बान पर लाना चाहे, जैसे फ़हश कलामी या बेहूदा गोई,
أَوْ شَتْمِ عِرْض أَوْ شَهَادَةِ بَاطِل
या दुशनाम तराज़ी या झूटी गवाही
أو اغْتِيَابِ مُؤْمِن غَائِبِ أَوْ سَبِّ حَاضِر،
या ग़ाएब मोमिन की ग़ीबत या मौजूद से बदज़बानी
وَمَا أَشْبَهَ ذَلِكَ نُطْقاً بِالْحَمْدِ لَكَ
और उस क़बील की दीगर बातें, उन्हें अपनी हम्द सराई
وَإغْرَاقاً فِي الثَّنَاءِ عَلَيْكَ،
मदह में कोशिश व इन्हेमाक,
وَذَهَاباً فِي تَمْجيدِكَ
तमजीद व बुज़ुर्गी के बयान,
وَشُكْراً لِنِعْمَتِكَ
शुक्रे नेमत
وَاعْتِرَافاً بِإحْسَانِكَ
व एतराफ़े एहसान
وَإحْصَاءً لِمِنَنِكَ.
और अपनी नेमतों के शुमार से तबदील कर दे
أللّهُمَّ صَـلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِـهِ
ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा
وَلاَ اُظْلَمَنَّ وَأَنْتَ مُطِيقٌ لِلدَّفْعِ عَنِّي،
और मुझ पर ज़ुल्म न होने पाए जबके तू उसके दफ़ा करने पर क़ादिर है,
وَلا أَظْلِمَنَّ وَأَنْتَ القَادِرُ عَلَى الْقَبْضِ مِنِّي،
और किसी पर ज़ुल्म न करूं जबके तू मुझे ज़ुल्म से रोक देने की ताक़त रखता है
وَلاَ أَضِلَّنَّ وَقَدْ أَمْكَنَتْكَ هِدَايَتِي،
और गुमराह न हो जाऊं जब के मेरी राहनुमाई तेरे लिये आसान है
وَلاَ أَفْتَقِرَنَّ وَمِنْ عِنْدِكَ وُسْعِي،
और मोहताज न हूँ जबके मेरी फ़ारिग़ुल बाली तेरी तरफ़ से है
وَلا أَطْغَيَنَّ وَمِنْ عِنْدِكَ وُجْدِي.
और सरकश न हो जाऊ ँ जबके मेरी ख़ुशहाली तेरी जानिब से है।
أللَّهُمَّ إلَى مَغْفِرَتِكَ وَفَدْتُ، وَإلَى عَفْوِكَ قَصَـدْتُ،
बारे इलाहा! मैं तेरी मग़फ़ेरत की जानिब आया हूं और तेरी मुआफ़ी का तलबगार
وَإلَى تَجَـاوُزِكَ اشْتَقْتُ، وَبِفَضْلِكَ وَثِقْتُ،
और तेरी बख़्शिश का मुशताक हूं, मैं सिर्फ़ तेरे फ़ज़्ल पर भरोसा रखता हूं
وَلَيْسَ عِنْدِي مَا يُوجِبُ لِي مَغْفِرَتَكَ،
और मेरे पास कोई चीज़ ऐसी नहीं है जो मेरे लिये मग़फ़ेरत का बाएस बन सके
وَلاَ فِي عَمَلِي مَا أَسْتَحِقُّ بِهِ عَفْوَكَ،
और न मेरे अमल में कुछ है के तेरे अफ़ो का सज़ावार क़रार पाऊं
وَمَا لِي بَعْدَ أَنْ حَكَمْتُ عَلَى نَفْسِي إلاَّ فَضْلُكَ،
और अब इसके बाद के मैं ख़ुद ही अपने खि़लाफ़ फ़ैसला कर चुका हूं तेरे फ़ज़्ल के सिवा मेरा सरमायाए उम्मीद क्या हो सकता है
فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ
लेहाज़ा मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल कर
وَتَفَضَّلْ عَلَيَّ
और मुझ पर तफ़ज़्ज़ुल फ़रमा,
أللَّهُمَّ وَأَنْطِقْنِي بِالْهُدى،
ख़ुदाया मुझे हिदायत के साथ गोया कर,
وَأَلْهِمْنِي ألتَّقْـوَى وَوَفِّقْنِي لِلَّتِيْ هِيَ أَزْكَى
मेरे दिल में तक़वा व परहेज़गारी का अलक़ा फ़रमा, पाकीज़ा अमल की तौफ़ीक़ दे,
وَاسْتَعْمِلْنِي بِمَا هُوَ أَرْضَى.
पसन्दीदा काम में मशग़ूल रख
أللَّهُمَّ اسْلُكْ بِيَ الطَّرِيقَـةَ الْمُثْلَى،
ख़ुदाया मुझे बेहतरीन रास्ते पर चला
وَاجْعَلْنِي عَلَى مِلَّتِكَ أَمُوتُ وَأَحْيَى.
और ऐसा कर के तेरे दीन व आईन पर मरूं और उसी पर ज़िन्दा रहूं।
أللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ
ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा
وَمَتِّعْنِي بِالاقْتِصَادِ، وَاجْعَلْنِي مِنْ أَهْلِ السَّدَادِ،
और मुझे (गुफ़तार व किरदार में) मयानारवी से बहरामन्द फ़रमा और दुरूस्तकारों और
وَمِنْ أَدِلَّةِ الرَّشَادِ، وَمِنْ صَالِحِي الْعِبَادِ،
हिदायत के रहनुमाओं और नेक बन्दों में से क़रार दे
وَارْزُقْنِي فَوْزَ الْمَعَادِ، وَسَلاَمَةَ الْمِرْصَادِ.
र दे और आख़ेरत की कामयाबी और जहन्नम से सलामती अता कर
أللَّهُمَّ خُذْ لِنَفْسِكَ مِنْ نَفْسِي مَـا يُخَلِّصُهَا،
ख़ुदाया मेरे नफ़्स का एक हिस्सा अपनी (इबतेलाओ आज़माइष के) लिये मख़सूस कर दे ताके उसे (अज़ाब से) रेहाई दिला सके
وَأَبْق لِنَفْسِي مِنْ نَفْسِي مَـا يُصْلِحُهَا;
और एक हिस्सा के जिससे उसकी (दुनयवी) इस्लाह व दुरूस्ती वाबस्ता है, मेरे लिये रहने दे
فَإنَّ نَفْسِي هَالِكَةٌ أَوْ تَعْصِمَهَا.
क्योंके मेरा नफ़्स तो हलाक होने वाला है मगर यह के तू उसे बचा ले जाए।
أَللَّهُمَّ أَنْتَ عُدَّتِي إنْ حَزِنْتُ،
ऐ अल्लाह! अगर मैं ग़मगीन हूं तो मेरा साज़ व सामाने (तसकीन) तू है,
وَأَنْتَ مُنْتَجَعِي إنْ حُرِمْتُ،
और अगर (हर जगह से) महरूम रहूं तो मेरी उम्मीदगाह तू है,
وَبِكَ استِغَاثَتِي إنْ كَرِثْتُ،
और अगर मुझ पर ग़मों का हुजूम हो तो तुझ ही से दाद व फ़रयाद है।
وَعِنْدَكَ مِمَّا فَاتَ خَلَفٌ، وَلِمَا فَسَدَ صَلاَحٌ،
जो चीज़ जा चुकी, उसका एवज़ और जो शय तबाह हो गई उसकी दुरूस्ती
وَفِيمَا أنْكَرْتَ تَغْييرٌ.
और जो तू नापसन्द करे उसकी तबदीली तेरे हाथ में है
فَامْنُنْ عَلَيَّ قَبْلَ الْبَلاءِ بِالْعَافِيَةِ، وَقَبْلَ الطَّلَبِ بِالْجِدةِ،
लेहाज़ा बला के नाज़िल होने से पहले आफ़ियत, मांगने से पहले ख़ुशहाली
وَقَبْلَ الضَّلاَلِ بِالرَّشَادِ، وَاكْفِنِي مَؤُونَةَ مَعَرَّةِ الْعِبَادِ،
और गुमराही से पहले हिदायत से मुझ पर एहसान फ़रमा और लोगों की सख़्त व दुरषत बातों के रंज से महफ़ूज़ रख
وَهَبْ لِيْ أَمْنَ يَوْمِ الْمَعَادِ، وَامْنَحنِي حُسْنَ الارْشَادِ.
और क़यामत के दिन अम्न व इतमीनान अता फ़रमा और हुस्ने हिदायत व इरशाद की तौफ़ीक़ मरहमत फ़रमा।
أللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّـد وَآلِـهِ
ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा
وَادْرَأ عَنّي بِلُطْفِـكَ، وَاغْـذُنِي بِنِعْمَتِكَ،
और अपने लुत्फ़ से (बुराइयों को) मुझसे दूर कर दे और अपनी नेमत से मेरी परवरिश
وَأَصْلِحْنِي بِكَرَمِـكَ، وَدَاوِنِي بصُنْعِـكَ،
और अपने करम से मेरी इस्लाह फ़रमा और अपने फ़ज़्ल व एहसान से (जिस्मानी व नफ़्सानी अमराज़ से) मेरा मदावा कर
وَأَظِلَّنِيْ فِي ذَرَاكَ، وجَلِّلْنِي رِضَـاكَ،
मुझे अपनी रहमत के साये में जगह दे, और अपनी रज़ामन्दी में ढांप ले
وَوَفِّقنِي إذَا اشْتَكَلَتْ عَلَيَّ الأمُـورُ لأِهْدَاهَـا،
जब उमूर मुशतबह हो जाएं तो जो उनमें ज़्यादा क़रीने सवाब हो
وَإذَا تَشَابَهَتِ الأعْمَالُ لأزْكَاهَا،
और जब आमाल में इशतेबाह वाक़ेअ हो जाए तो जो उनमें पाकीज़ातर हो
وَإذَا تَنَاقَضَتِ الْمِلَلُ لأِرْضَاهَا.
और जब जब मज़ाहिब में इख़्तेलाफ़ पड़ जाए तो जो उनमें पसन्दीदातर हो उस पर अमल पैरा होने की तौफ़ीक़ अता फ़रमा
أللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ
ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा
وَتَوِّجْنِي بِالْكِفَايَةِ، وَسُمْنِي حُسْنَ الْوِلايَةِ،
और मुझे बेनियाज़ी का ताज पहना और मुतअल्लुक़ा कामों और अहसन तरीक़ से अन्जाम देने पर मामूर फ़रमा
وَهَبْ لِيْ صِدْقَ الْهِدَايَةِ، وَلا تَفْتِنِّي بِالسَّعَةِ،
और ऐसी हिदायत से सरफ़राज़ फ़रमा जो दवाम व साबित लिये हुए हो और ग़ना व ख़ुषहाली से मुझे बेराह न होने दे
وَامْنَحْنِي حُسْنَ الدَّعَةِ، وَلا تَجْعَلْ عَيْشِي كَدّاً كَدّاً،
और आसूदगी व आसाइश अता फ़रमा, और ज़िन्दगी को सख़्त दुशवार न बना दे
وَلاَ تَرُدَّ دُعَائِي عَلَيَّ رَدّاً;
मेरी दुआ को रद्द न कर
فَإنِّي لا أَجْعَلُ لَكَ ضِدّاً وَلا أَدْعُو مَعَكَ نِدّاً.
क्योंके मैं किसी को तेरा मद्दे मुक़ाबिल नहीं क़रार देता और न तेरे साथ किसी को तेरा हमसर समझते हुए पुकारता हूँ।
أللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّـد وَآلِـهِ
ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा
وَامْنَعْنِي مِنَ السَّرَفِ وَحَصِّنْ رِزْقِي مِنَ التَّلَفِ،
और मुझे फ़ुज़ूलख़र्ची से बाज़ रख और मेरी रोज़ी को तबाह होने से बचा
وَوَفِّرْ مَلَكَتِي بِالْبَرَكَةِ فِيهِ،
और मेरे माल में बरकत देकर इसमें इज़ाफ़ा कर
وَأَصِبْ بِي سَبِيلَ الْهِدَايَةِ لِلْبِرِّ فِيمَا اُنْفِقُ مِنْهُ.
और मुझे इसमें से उमूरे ख़ैर में ख़र्च करने की वजह से राहे हक़ व सवाब तक पहुंचा।
أللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ
बारे इलाहा! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा
وَاكْفِنِي مَؤُونَةَ الاكْتِسَابِ،
और मुझे कस्बे माशियत के रंज व ग़म से बेनियाज़ कर दे
وَارْزُقْنِي مِنْ غَيْرِ احْتِسَاب،
और बेहिसाब रोज़ी अता फ़रमा
فَلاَ أَشْتَغِلَ عَنْ عِبَادَتِكَ بِالطَّلَبِ
ताके तलाषे मआश में उलझ कर तेरी इबादत से रूगर्दान न हो जाऊं
وَلا أَحْتَمِلَ إصْرَ تَبِعَاتِ الْمَكْسَبِ.
और (ग़लत व नामशरूअ) कार व कस्ब का ख़मयाज़ा न भुगतूं।
أللَّهُمَّ فَأَطْلِبْنِي بِقُدْرَتِكَ مَا أَطْلُبُ،
ऐ अल्लाह! मैं जो कुछ तलब करता हूं उसे अपनी क़ुदरत से मुहय्या कर दे
وَأَجِرْنِي بِعِزَّتِكَ مِمَّا أَرْهَبُ.
और जिस चीज़ से ख़ाएफ़ हूं उससे अपनी इज़्ज़त व जलाल के ज़रिये पनाह दे।
أللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ وَصُنْ وَجْهِي بِالْيَسَارِ،
बारे इलाहा! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और मेरी आबरू को ग़ना व तवंगरी के साथ महफ़ूज़ रख
وَلاَ تَبْتَذِلْ جَاهِي بِالإقْتارِ فَأَسْتَرْزِقَ أَهْلَ رِزْقِكَ،
और फ़क्ऱ व तंगदस्ती से मेरी मन्ज़ेलत को नज़रों से न गिरा के तुझसे रिज़्क़ पाने वालों से रिज़्क़ मांगने लगूं
وَأَسْتَعْطِيَ شِرَارَ خَلْقِكَ، فَأفْتَتِنَ بِحَمْدِ مَنْ أَعْطَانِي،
और तेरे पस्त बन्दों की निगाहे लुत्फ़ व करम को अपनी तरफ़ मोड़ने की तमन्ना करूं
وَاُبْتَلَى بِـذَمِّ مَنْ مَنَعَنِي وَأَنْتَ مِنْ دُونِهِمْ وَلِيُّ الإعْطَاءِ وَالْمَنْعِ.
और जो मुझे दे उसकी मदह व सना और जो न दे उसकी बुराई करने में मुब्तिला हो जाऊं। और तू ही अता करने और रोक लेने का इख़्तेयार रखता है न के वह।
أللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِـةِ
ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा
وَارْزُقْنِي صِحَّةً فِيْ عِبَادَة،
और मुझे ऐसी सेहत दे जो इबादत में काम आए
وَفَراغاً فِي زَهَادَة،
और ऐसी फ़ुरसत जो दुनिया से बेताअल्लुक़ी में सर्फ़ हो
وَعِلْماً فِي اسْتِعمَـال، وَوَرَعـاً فِي إجْمَال.
और ऐसा इल्म जो अमल के साथ हो और ऐसी परहेज़गारी जो हद्दे एतदाल में हो (के वसवास में मुब्तिला न हो जाऊं)
أللَّهُمَّ اخْتِمْ بِعَفْوِكَ أَجَلي،
ऐ अल्लाह! मेरी मुद्दते हयात को अपने अफ़ो व दरगुज़र के साथ ख़त्म कर
وَحَقِّقْ فِي رَجَاءِ رَحْمَتِكَ أَمَلِي،
और मेरी आरज़ू को रहमत की उम्मीद में कामयाब फ़रमा
وَسَهِّلْ إلَى بُلُوغِ رِضَاكَ سُبُلِي،
और अपनी ख़ुशनूदी तक पहुंचने के लिये राह आसान कर
وَحَسِّن فِي جَمِيعِ أَحْوَالِيْ عَمَلِي.
और हर हालत में मेरे अमल को बेहतर क़रार दे।
أللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ
ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा
وَنَبِّهْنِي لِذِكْرِكَ فِي أَوْقَاتِ الْغَفْلَةِ،
और मुझे ग़फ़लत के लम्हात में अपने ज़िक्र के लिये होशियार कर
وَاسْتَعْمِلْنِي بِطَاعَتِـكَ فِي أَيَّامِ الْمُهْلَةِ،
और मोहलत के दिनों में अपनी इताअत में मसरूफ़ रख
وَانْهَجْ لِي إلى مَحَبَّتِكَ سَبيلاً سَهْلَةً
और अपनी मोहब्बत की सहल व आसान राह मेरे लिये खोल दे
أكْمِلْ لِي بِهَا خَيْرَ الدُّنْيَا وَالآخِـرَةِ.
और उसके ज़रिये मेरे लिये दुनिया व आख़ेरत की भलाई को कामिल कर दे।
أللَّهُمَّ وَصَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ
ऐ अल्लाह! मोहम्मद (स0) और उनकी औलाद पर बेहतरीन रहमत नाज़िल फ़रमा
كَأَفْضَلِ مَـا صَلَّيْتَ عَلَى أَحَد مِنْ خَلْقِكَ قَبْلَهُ،
ऐसी रहमत जो न उससे पहले तूने मख़लूक़ात में से किसी एक पर नाज़िल की हो
وَأَنْتَ مُصَلٍّ عَلَى أَحَد بَعْدَهُ،
और न उसके बाद किसी पर नाज़िल नाज़िल करने वाला हो
وَآتِنا فِي الدُّنْيَا حَسَنَةً وَفِي الآخِرَةِ حَسَنَةً ،
और हमें दुनिया में भी नेकी अता कर और आख़ेरत में भी
وَقِنِي بِرَحْمَتِكَ عَذَابَ النَّارِ.
और अपनी रहमत से हमें दोज़ख़ के अज़ाब से महफ़ूज़ रख

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