His Supplication in the Morning and Evening
دُعَاؤُهُ عِنْدَ الصَّبَاحِ وَ الْمَسَاءِ
أَلْحَمْدُ للهِ الَّذِي خَلَقَ اللَّيْلَ وَالنَّهارَ بِقُوَّتِهِ،
सब तारीफ़ उस अल्लाह के लिये हैं जिसने अपनी क़ूवत व तवानाई से शब व रोज़ को ख़ल्क़ फ़रमाया
وَمَيَّزَ بَيْنَهُمَا بِقُدْرَتِهِ،
और अपनी क़ुदरत की कारफ़रमाई से उन दोनों में इम्तियाज़ क़ायम किया
وَجَعَلَ لِكُلِّ وَاحِد مِنْهُمَا حَدّاً مَحْدُوداً، وَأَمَداً مَمْدُوداً ،
और उनमें से हर एक को मुअय्यना हुदूद व मुक़र्ररा औक़ात का पाबन्द बनाया
يُولِجُ كُلَّ وَاحِد مِنْهُمَا فِي صَاحِبِهِ،
उसके मुताबिक़ रात की जगह पर दिन
وَيُولِجُ صَاحِبَهُ فِيهِ بِتَقْدِير مِنْهُ لِلْعِبَادِ
और दिन की जगह पर रात को लाता है
فِيمَا يَغْـذُوهُمْ بِـهِ وَيُنْشئُهُمْ عَلَيْـهِ،
ताके इस ज़रिये से बन्दों की रोज़ी और उनकी परवरिश का सरो सामान करे
فَخَلَقَ لَهُمُ اللَّيْـلَ لِيَسْكُنُوا فِيْهِ مِنْ حَرَكَاتِ التَّعَبِ،
चुनान्चे उसने उनके लिये रात बनाई
وَنَهَضَاتِ النَّصَبِ، وَجَعَلَهُ لِبَاساً لِيَلْبَسُوا مِنْ رَاحَتِهِ وَمَنَامِهِ،
ताके वह उसमें थका देने वाले कामों और ख़स्ता कर देने वाली कलफ़तों के बाद आराम करें,
فَيَكُونَ ذَلِكَ جَمَاماً وَقُوَّةً، وَلِيَنَالُوا بِهِ لَذَّةً وَشَهْوَةً.
और उसे परदा उसे क़रार दिया ताके सुकून की चादर तानकर आराम से सोएँ और यह उनके लिये राहत व निशात और तबई क़ूवतो ंके बहाल होने और लज़्ज़त व कैफ़ अन्दोज़ी का ज़रिया हो
وَخَلَقَ لَهُمُ النَّهارَ مُبْصِراً لِيَبْتَغُوا فِيهِ مِنْ فَضْلِهِ،
और दिन को उनके लिये रौशन व रख़्शाँ पैदा किया ताके इसमें कार-व-कस्ब में सरगर्मे अमल होकर) इसके फ़ज़्ल की जुस्तजू करें
وَلِيَتَسَبَّبُوا إلَى رِزْقِهِ، وَيَسْرَحُوا فِي أَرْضِهِ،
और रोज़ी का वसीला ढूंढें और उसकी ज़मीन में चलें फिरें
طَلَباً لِمَا فِيـهِ نَيْلُ الْعَاجِلِ مِنْ دُنْيَاهُمْ،
दुनियावी मुनाफ़े और उख़रवी फ़वाएद के वसाएल तलाश करने के लिये
وَدَرَكُ الاجِلِ فِيْ اُخْراهُمْ. بِكُلِّ ذلِكَ يُصْلِحُ شَأنَهُمْ،
इन तमाम कारफ़रमाइयों से वह उनके हालात सँवारता और उनके आमाल की जांच करता
وَيَبْلُو أَخْبَارَهُمْ وَيَنْظُرُ كَيْفَ هُمْ فِي أَوْقَاتِ طَاعَتِـهِ،
और यह देखता है के वह लोग इताअत की घड़ियों,
وَمَنَازِلِ فُـرُوضِهِ وَمَوَاقِعِ أَحْكَامِهِ
फ़राएज़ की मंज़िलों और तामीले एहकाम के मौक़ों पर कैसे साबित होते हैं
لِيَجْزِيَ الَّذِينَ أسَاءُوا بِمَا عَمِلُوا وَيَجْزِيَ الَّذِينَ أَحْسَنُوا بِالْحُسْنَى.
ताके बुरों को उनकी बदआमालियों की सज़ा और नेकोकारों को अच्छा बदला दे।
اللَّهُمَّ فَلَكَ الْحَمْدُ عَلَى مَافَلَقْتَ لَنَا مِنَ الإصْبَاحِ،
ऐ अल्लाह! तेरे ही लिये तमाम तारीफ़ व तौसीफ़ है के तूने हमारे लिये (रात का दामन चाक करके) सुबह का उजाला किया और
وَمَتَّعْتَنَا بِهِ مِنْ ضَوْءِ النَّهَارِ،
इसी तरह दिन की रोशनी से हमें फ़ायदा पहुंचाया
وَبَصَّرْتَنَا مِنْ مَطَالِبِ الاقْوَاتِ،
और तलबे रिज़्क़ के मवाक़े हमें दिखाए
وَوَقَيْتَنَا فِيهِ مِنْ طَوارِقِ الآفاتِ.
और इसमें आफ़ात व बल्लियात से हमें बचाया
أَصْبَحْنَا وَأَصْبَحَتِ الاَشْياءُ كُلُّهَا بِجُمْلَتِهَا لَكَ:
हम और हमारे अलावा सब चीज़ें तेरी
سَمَاؤُها وَأَرْضُهَا وَمَا بَثَثْتَ
आसमान भी और ज़मीन भी और वह सब चीज़ें जिन्हें तूने इनमें फैलाया है
فِي كُلِّ وَاحِد مِنْهُمَا سَاكِنُهُ وَمُتَحَرِّكُهُ وَمُقِيمُهُ
वह साकिन हूँ या मुतहर्रिक मुक़ीम हूँ
وَشَاخِصُهُ وَمَا عَلا فِي الْهَواءِ وَمَا كَنَّ تَحْتَ الثَّرى
या राहे नूर व फ़िज़ा में बलन्द हूँ या ज़मीन की तहों में पोशीदा,
أَصْبَحْنَا فِي قَبْضَتِكَ
हम तेरे क़ब्ज़ए क़ुदरत में हैं
يَحْوِينَا مُلْكُكَ وَسُلْطَانُكَ وَتَضُمُّنَا مَشِيَّتُكَ،
और तेरा इक़्तेदार और तेरी बादशाहत हम पर हावी है और तेरी मशीयत का मुहीत हमें घेरे हुए है
وَنَتَصَرَّفُ عَنْ أَمْرِكَ، وَنَتَقَلَّبُ فِيْ تَدْبِيرِكَ
तेरे हुक्म से हम तसर्रूफ़ करते और तेरी तदबीर व कारसाज़ी के तहत हम एक हालत से दूसरी हालत की तरफ़ पलटते हैं
لَيْسَ لَنَا مِنَ الامْرِ إلاّ مَا قَضَيْتَ
हमारे इख़्तेयार में कुछ नहीं है उसके अलावा जो अम्र तूने हमारे लिये नाफ़िज़ किया
وَلا مِنَ الْخَيْـرِ إلا مَـا أَعْطَيْتَ.
और जो ख़ैर और भलाई तूने बख़्शी
وَهَذَا يَوْمٌ حَادِثٌ جَدِيدٌ، وَهُوَ عَلَيْنَا شَاهِدٌ عَتِيدٌ ،
और यह दिन नया और ताज़ा वारिद है, हम पर ऐसा गवाह है जो हमहवक़्त हाज़िर है।
إنْ أحْسَنَّا وَدَّعَنَا بِحَمْد، وَإِنْ أسَأنا فارَقَنا بِذَمّ
अगर हमने अच्छे काम किये तो वह तौसीफ़ व सना करते हुए हमें रूख़सत करेगा और अगर बुरे काम किये तो बुराई करता हुआ हमसे अलाहीदा होगा
اللَّهُمَ صَلِّ عَلَى مُحَمَد وَآلِـهِ
ऐ अल्लाह! तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा
وَارْزُقْنَـا حُسْنَ مُصَاحَبَتِهِ وَاعْصِمْنَا
और हमें इस दिन की अच्छी रिफ़ाक़त नसीब करना और हमें बचाए रखना
مِنْ سُوْءِ مُفَارَقَتِهِ بِارْتِكَابِ جَرِيرَة،
उसके चीँ ब जबीं होकर रूख़सत होने से, किसी ख़ता के इरतेका करने की वजह से
أَوِ اقْتِرَافِ صَغِيرَة أوْ كَبِيرَة.
या सग़ीरा व कबीरा गुनाह में मुब्तिला होने की वजह से
وَأجْزِلْ لَنَا فِيهِ مِنَ الْحَسَناتِ وَأَخْلِنَا فِيهِ مِنَ السَّيِّئاتِ.
इस दिन में हमारी नेकियों का हिस्सा ज़्यादा कर और बुराइयों से हमारा दामन ख़ाली रख
وَامْلا لَنَا مَا بَيْنَ طَرَفَيْهِ حَمْداً وَشُكْراً وَأجْراً وَذُخْراً وَفَضْلاً وَإحْسَاناً.
और हमारे लिये उसके आग़ाज़ व अन्जाम को हम्द व सपास, सवाब व ज़ख़ीरए आख़ेरत और बख़्शिश व एहसान से भर दे।
اللَّهُمَّ يسِّرْ عَلَى الْكِرَامِ الْكَاتِبِينَ مَؤُونَتَنَا،
ऐ अल्लाह! करामन कातेबीन पर (हमारे गुनाह क़लमबन्द करने की) ज़हमत कम कर दे
وَامْلا لَنَا مِنْ حَسَنَاتِنَا صَحَائِفَنَا.
और हमारा नामाए आमाल नेकियों से भर दे
وَلاَ تُخْزِنَا عِنْدَهُمْ بِسُوءِ أَعْمَالِنَا.
और बद आमालियों की वजह से हमें उनके सामने रूसवा न कर।
اللَّهُمَّ اجْعَلْ لَنَا فِي كُلِّ سَاعَة مِنْ سَاعَاتِهِ حَظّاً مِنْ عِبَادِكَ ،
बारे इलाहा! तू उस दिन के लम्हों में से हर लम्हा व साअत में अपने ख़ास बन्दों का ख़त व नसीब और अपने शुक्र का एक हिस्सा
وَنَصِيباً مِنْ شُكْرِكَ وَشَاهِدَ صِدْق مِنْ مَلائِكَتِكَ
और फ़रिश्तों में से एक सच्चा गवाह हमारे लिये क़रार दे।
أللَّهَّمَ صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ ،
ऐ अल्लाह! तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा
وَاحْفَظْنَا مِنْ بَيْنِ أيْدِينَا وَمِنْ خَلْفِنَا وَعَنْ أيْمَانِنَا وَعَنْ شَمَائِلِنَا،
और आगे पीछे, दाहिने और बांये और तमाम एतराफ़ व जवानिब से हमारी हिफ़ाज़त कर
وَمِنْ جَمِيْعِ نَوَاحِيْنَا حِفْظاً عَاصِماً مِنْ مَعْصِيَتِكَ
ऐसी हिफ़ाज़त जो हमारे लिये गुनाह व मासियत से सद्दे राह हो
هَادِياً إلَى طَاعَتِكَ مُسْتَعْمِلاً لِمَحَبَّتِكَ.
तेरी इताअत की तरफ़ रहनुमाई करे और तेरी मोहब्बत में सर्फ़ हो
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ
ऐ अल्लाह! तू मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा
وَوَفِّقْنَا فِي يَوْمِنَا هذا ولَيْلَتِنَا هذِهِ وَفِي جَمِيعِ أيّامِنَا
और हमें आज के दिन आज की रात और ज़िन्दगी के तमाम दिनों में तौफ़ीक़ अता फ़रमा
لاسْتِعْمَالِ الْخَيْرِ وَهِجْـرَانِ الشَرِّ وَشُكْـرِ ألنِّعَمِ
के हम नेकियों पर अमल करें, बुराइयों को छोड़ें, नेमतों पर शुक्र
وَاتّبَـاعِ السُّنَنِ وَمُجَانَبَةِ البِدَعِ
और सुन्नतों पर अमल करें, बिदअतों से अलग-थलग रहें
وَالأمْرِ بِـالْمَعْرُوفِ وَالنَّهيِ عَنِ الْمُنْكَرِ
और नेक कामों का हुक्म दें और बुरे कामों से रोकें,
وَحِياطَةِ الإسْلاَمِ وَانْتِقَاصِ الْبَاطِلِ وَإذْلالِهِ
इस्लाम की हिमायत व तरफ़दारी करें, बातिल को कुचलें और उसे ज़लील करें
وَنُصْرَةِ الْحَقِّ وَإعْزَازِهِ ، وَإرْشَادِ الضَّالِّ ،
हक़ की नुसरत करें और उसे सरबलन्द करें, गुमराहों की रहनुमाई करें
وَمُعَاوَنَةِ الضَّعِيفِ وَإدْرَاكِ اللَّهِيْفِ.
कमज़ोरों की एआनत और दर्दमन्दों की चाराजोई करें
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ
बारे इलाहा! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा
وَاجْعَلْهُ أيْمَنَ يَوْم عَهِدْنَاهُ ،
और आज के दिन को उन तमाम दिनों से जो हमने गुज़ारे ज़्यादा मुबारक दिन
وَأَفْضَلَ صَاحِب صَحِبْنَاهُ ،
और उन तमाम साथियों से जिनका हमने साथ दिया इसको बेहतरीन रफ़ीक़
وَخَيْرَ وَقْت ظَلِلْنَا فِيْهِ.
और उन तमाम वक़्तों से जिनके ज़ेरे साया हमने ज़िन्दगी बसर की इसको बेहतरीन वक़्त क़रार दे
وَاجْعَلْنَا مِنْ أرْضَى مَنْ مَرَّ عَلَيْهِ اللَّيْـلُ وَالنَّهَارُ مِنْ جُمْلَةِ خَلْقِكَ
और हमें उन तमाम मख़लूक़ात में से ज़्यादा राज़ी व ख़ुशनूद रख जिन पर शब व रोज़ के चक्कर चलते रहे हैं
وأَشْكَـرَهُمْ لِمَا أوْلَيْتَ مِنْ نِعَمِكَ
और इन सबसे ज़्यादा अपनी अता की हुई नेमतों का शुक्रगुज़ार
وَأقْوَمَهُمْ بِمَـا شَرَعْتَ مِنْ شَرَائِعِكَ ،
और उन सबसे ज़़्यादा अपने जारी किये हुए एहकाम का पाबन्द
وَأَوْقَفَهُمْ عَمَّا حَذَّرْتَ مِنْ نَهْيِكَ.
और उन सबसे ज़्यादा उन चीज़ों से किनाराकशी करने वाला क़रार दे जिनसे तूने ख़ौफ़ दिलाकर मना किया है।
اللَهُمَّ إنِّي اشْهِدُكَ وَكَفَى بِكَ شَهِيداً وَاُشْهِدُ سَمَاءكَ وَأَرْضَكَ
ऐ ख़ुदा! मैं तुझे गवाह करता हूँ और तू गवाही के लिये काफ़ी है और तेरे आसमान और तेरी ज़मीन को गवाह करता हूँ
وَمَنْ أَسْكَنْتَهُما مِنْ مَلائِكَتِـكَ وَسَائِرِ خَلْقِكَ فِي يَوْمِي هَذَا ،
और उनमें जिन जिन फ़रिश्तों और जिस जिस मख़लूक़ को तूने बसाया है गवाह करता हूँ,
وَسَاعَتِي هَذِهِ ، وَلَيْلَتِي هَذِهِ ، وَمُسْتَقَرِّي هَذَا ،
आज के दिन और उस घड़ी और उस रात में और उस मुक़ाम पर
أنِّي أَشْهَدُ أَنَّكَ أنْتَ اللهُ الِذَّي
गवाह करता हूँ के मैं इस बात का मोतरफ़ हूँ के सिर्फ़ तू ही वह माबूद है
لاَ إلهَ إلاّ أَنْتَ قَائِمٌ بِـالْقِسْطِ ،
जिसके अलावा कोई माबूद नहीं, इन्साफ़ का क़ायम करने वाला,
عَدْلٌ فِي الْحُكْم ، رَؤُوفٌ بِالْعِبَادِ ،
हुक्म में अद्ल मलहोज़ रखने वाला, बन्दों पर मेहरबान,
مَالِكُ المُلْكِ رَحِيمٌ بِالْخَلْقِ ،
इक़्तेदार का मालिक और कायनात पर रहम करने वाला
وَأَنَّ مُحَمَّداً عَبْدُكَ وَرَسُولُكَ وَخِيرَتُكَ مِنْ خَلْقِكَ ،
और इस बात की भी शहादत देता हूँ के मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम तेरे ख़ास बन्दे, रसूल और बरगुज़ीदाए कायनात हैं
حَمَّلْتَهُ رِسَالَتَكَ فَأدَّاهَا وَأَمَرْتَهُ بالنُّصْحِ لاُِمَّتِهِ فَنَصَحَ لَهَا.
उन पर तूने रिसालत की ज़िम्मेदारियां आयद की ंतो उन्होंने उसे पहुंचाया और अपनी उम्मत को पन्द व नसीहत करने का हुक्म दिया तो उन्होंने नसीहत फ़रमाई
اللَّهُمَّ فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ أكْثَرَ مَا صَلَّيْتَ عَلَى أَحَد مِنْ خَلْقِكَ
बारे इलाहा! मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा
وَآتِهِ عَنَّا أَفْضَلَ مَا آتَيْتَ أَحَداً مِنْ عِبَادِكَ
हमारी तरफ़ से उन्हें वह बेहतरीन तोहफ़ा अता कर जो तेरे हर उस इनआम से बढ़ा हुआ हो जो अपने बन्दों में से तूने किसी एक को दिया हो
وَاجْزِهِ عَنَّا أَفْضَلَ وَأكْرَمَ مَا جَزَيْتَ أَحَداً مِنْ أَنْبِيائِـكَ عَنْ أمَّتِهِ.
और हमारी तरफ़ से उन्हें वह जज़ा दे जो हर उस जज़ा से बेहतर व बरतर हो जो अम्बिया (अ0) में से किसी एक को तूने उसकी उम्मत की तरफ़ से अता फ़रमाई हो।
إنَّـكَ أَنْتَ الْمَنَّانُ بِالْجَسِيمِ الْغَـافِر لِلْعَظِيمِ ،
बेशक तू बड़ी नेमतों का बख़्शने वाला और बड़े गुनाहों से दरगुज़र करने वाला और
وَأَنْتَ أَرْحَمُ مِنْ كُلِّ رَحِيم ،
और हर रहीम से ज़्यादा रहम करने वाला है
فَصَلِّ عَلَى مُحَمَّد وَآلِهِ
लेहाज़ा तू मोहम्मद (स0) और उनकी औलाद (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा
الطَّيِّبِينَ الطَّاهِرِينَ الأَخْيَارِ الانْجَبِينَ.
पाक व पाकीज़ा और शरीफ़ व नजीब